ईश्वर का कोई दखल नही हैं, हमारी जन्मपत्री या भाग्य के निर्माण में। सभी कुछ एक प्रोग्राम किये गए नियमों के द्वारा संपन्न हो रहा हैं।
आइये ईश्वर के इस सिस्टम को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों आज तक हम सब ये सुनते आये हैं कि मरने के बाद स्वर्ग में बैठे कोई "चित्रगुप्त" जी हमारे कर्मों का लेखा-जोखा करके ये तय करेंगे की हमने क्या पाप किये हैं और क्या पुण्य किये हैं। और उसी के अनुसार वे हमारे अगले जन्म की ग्रह-दशा या दिशा तय करेंगे। और शास्त्रों में भी कुछ ऐसा ही बताया गया हैं।
मित्रों सच्चाई तो ये हैं कि स्वर्ग में "चित्रगुप्त" नाम का ऐसा कोई अधिकारी नही हैं। तो क्या सभी शास्त्र झूठे हैं ?
नही बिल्कुल नहीं, शास्त्रों में कुछ भी गलत नही लिखा हैं... बस फर्क इतना ही हैं कि शास्त्रों के श्लोको का अनुवाद, अनुवादकर्ताओ ने अपनी-अपनी शब्दावली में प्रस्तुत किया हैं।
मित्रों अपने जीवन पर थोडा गहराई में जाकर "ध्यान" दीजिये, और देखिये... कि कोई ऐसा हैं... जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हर पल आपके साथ हैं, वो हर-पल, सोते-जागते, उठते-बैठते, पल-पल आपके साथ हैं। आप सो जाते हो फिर भी वो जाग रहा होता हैं।
जो निरन्तर आपको और आपके कर्मों को देख रहा हैं।
जो जन्मों-जन्मों से आपके साथ हैं।
आखिर कौन हैं वो ???
मित्रों वो और कोई नही...
आपका "अंतर्मन" हैं...
बचपन से लेकर अब तक आपका अंतर्मन आपकी सारी बातों को जानता हैं, आपके सारे कर्मों को जानता हैं, आपके सारे अच्छे-बुरे कर्मो का लेखा-जोखा इसी अंतर्मन के पास हैं। बचपन से लेकर मृत्यु तक आपका मन पल-पल की रिकॉर्डिंग कर रहा होता हैं। और ये ही नही आपका हर कर्म... मन की मैमोरी में उस कर्म को "चित्रों" साथ... उस कर्म से जुड़ीं उसकी भावना (फिलिंग) के साथ Save कर रहा होता हैं। आपने आज तक जो पाप किया हैं वो आपके मन को पता हैं। आपने जो पुण्य किये वो आपके मन को पता हैं। आपके जीवन की हर घटना की जानकारी और उससे सम्बंधित बने भाव का हर-पल आपका मन रिकॉर्ड कर रहा होता हैं।
और....
मरणोंपरान्त आपके मन में रिकॉर्ड इन्ही ""गुप्तचित्रों"" और इनके साथ जुडी भावनाओं (फिलिंग) के आधार पर ही आपके अगले जन्म का निर्धारण आपके द्वारा ही हो जाता हैं। मृत्यु के समय इस जन्म में बने सभी भावों के अनुसार उनके फलों को अगले जन्म में ट्रांसफर कर दिया जाता हैं। मित्रों सारा का सारा कंप्यूटर सिस्टम आपमें ही सेट हैं। सब का सब एक निश्चित प्रोग्रामिंग के तहत संपन्न होता जाता हैं। आप क्या सोचते हो कंप्यूटर आप ही बना सकते हो ? कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सिर्फ मनुष्य को ही आती हैं। अरे कंप्यूटर... इंसान ने बनाया और इंसान को भगवान् ने बनाया, तो इंसान को बनाने वाला भगवान् क्या प्रोग्रामिंग नही समझता ? हा हा हा...
मित्रों स्वर्ग में बैठा ये ""चित्रगुप्त"" और कोई नही... बल्कि जन्म से लेकर मृत्यु तक... आपके अंतर्मन में रिकॉर्ड हुए इन "गुप्तचित्रों" को हीं "चित्रगुप्त" कहा गया हैं। और इन्ही गुप्तचित्रों के साथ-साथ हमारे पाप-पुण्य का भी ब्यौरा जुड़ा होता हैं जो हमारे द्वारा ही डाला होता हैं। भाई आप जो भी कर्म कर रहे हो वो आपको पता है कि कोनसा पाप हैं और कोनसा पुण्य हैं। जैसे आप झूठ बोल रहे हो या चोरी कर रहे हो.. तो आपके मन को पता है की आप ये पाप कर रहे हो। बस फिर क्या सिस्टम हमारे द्वारा ही फीड किये हुए पाप-पुण्य का आंकलन कर अगली दिशा तय कर देता हैं।
मित्रों गीता के आँठवे अध्याय के छटे श्लोक में देखो क्या लिखा हैं। हालाँकि मुझे संस्कृत नही आती हैं पर गीता पढ़ते समय मैं उसके हिंदी में दिये अनुवाद को गहराई में जाकर समझने का प्रयास करता हूँ।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः॥८- ६॥
इसका अर्थ हैं कि मनुष्य अपने जीवन के अंतकाल में अपने मन में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है वह उस उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वो सदा उसी भाव से भावित है।
यानी मरते समय हमारे मन में अलग-अलग विषयों के प्रति जैसा-जैसा भाव होता हैं उन्ही भावों के अनुसार अगले जन्म में हम उसी को प्राप्त होते हैं। जैसे मरते समय किसी व्यक्ति के अंतर्मन में संतान के प्रति ऐसा भाव बन जाये की "सन्तान ना होती तो अच्छा होता" तो उसके इसी भाव के अनुसार ""जन्मपत्री"" के पंचम भाव से पीड़ित वाली ग्रह-स्तिथि में जन्म दे दिया जाता हैं। और अगले जन्म में उसके सन्तान का अभाव रहता हैं, क्योकि मरते समय उसका सन्तान न होने का भाव बन गया। और अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे की सन्तान को देखकर मन मैं ऐसा भाव बना लें की मुझे अगले जन्म में ऐसी आज्ञाकारी सन्तान मिले तो अगले जन्म में उसे भावानुसार वैसी ही संतान सन्तान का सुख मिलता हैं।
मित्रों मैंने मात्र एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। अगला जन्म, और जन्मपत्री के ग्रह-नक्षत्रों का चुनाव मात्र एक संतान के विषय भाव से संपन्न नही होता बल्कि मरते समय उसके अंतर्मन में जीवन के अनुभव से जिस-जिस विषय के प्रति जैसा-जैसा भाव बनता हैं उन सभी भावों के अंत में जो फल निकलता हैं उसी के अनुसार नियमों के आधार पर जातक स्वयं अपनी जन्मकालीन "ग्रह-नक्षत्र" स्तथि का चुनाव कर सटीक समय पर उस जगह जन्म लेता हैं जो उसका भाव होता हैं। मित्रों इन जन्मकालीन "ग्रह-नक्षत्र" स्तथि के चुनाव में ईश्वर का कोई दखल नही होता हैं, ये सब का सब सिस्टम और नियमों के मुताबिक़ ही संपन्न होता हैं।
(मित्रों एक बात ध्यान रखे, यहाँ संतान सम्बंधी मैंने मात्र एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत किया हैं, पर इसके अलावा और भी बहुत से कारण होते हैं जिनसे संतान का अभाव रह सकता हैं।)
मित्रों मेरे शब्दों में कहूँ तो मन की माया बड़ी निराली हैं, मन ऊर्जावान हैं, और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उधर ही हो जाता हैं। संसार में जो भी कुछ घटित हो रहा हैं उसका मूल कारण हमारा ""ध्यान"" हैं।
मित्रों अब तो आपको समझ में आ गया होगा की हमारे जन्म और जन्मपत्री के निर्धारण में ईश्वर का कोई दखल नही होता... सबकुछ हमारे ही द्वारा संपन्न होता हैं। अगले आर्टिकल में इस बारे में हम और चर्चा करेंगे जिसमे पाप-पुण्य का निर्धारण हमारे द्वारा कैसे होता हैं, और जन्मकालीन ग्रहों का या पिछले जन्म के भावों का कैसा प्रभाव इस जन्म में होता हैं, और किन उपायों से उन पिछले जन्म के बुरे भावों के प्रभाव को काटा जा सकता हैं, या ज्योतिष की भाषा में कैसे ग्रहों के बुरे प्रभाव से मुक्त हुआ जा सकता हैं।
राधे-राधे...
आइये ईश्वर के इस सिस्टम को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों आज तक हम सब ये सुनते आये हैं कि मरने के बाद स्वर्ग में बैठे कोई "चित्रगुप्त" जी हमारे कर्मों का लेखा-जोखा करके ये तय करेंगे की हमने क्या पाप किये हैं और क्या पुण्य किये हैं। और उसी के अनुसार वे हमारे अगले जन्म की ग्रह-दशा या दिशा तय करेंगे। और शास्त्रों में भी कुछ ऐसा ही बताया गया हैं।
मित्रों सच्चाई तो ये हैं कि स्वर्ग में "चित्रगुप्त" नाम का ऐसा कोई अधिकारी नही हैं। तो क्या सभी शास्त्र झूठे हैं ?
नही बिल्कुल नहीं, शास्त्रों में कुछ भी गलत नही लिखा हैं... बस फर्क इतना ही हैं कि शास्त्रों के श्लोको का अनुवाद, अनुवादकर्ताओ ने अपनी-अपनी शब्दावली में प्रस्तुत किया हैं।
मित्रों अपने जीवन पर थोडा गहराई में जाकर "ध्यान" दीजिये, और देखिये... कि कोई ऐसा हैं... जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हर पल आपके साथ हैं, वो हर-पल, सोते-जागते, उठते-बैठते, पल-पल आपके साथ हैं। आप सो जाते हो फिर भी वो जाग रहा होता हैं।
जो निरन्तर आपको और आपके कर्मों को देख रहा हैं।
जो जन्मों-जन्मों से आपके साथ हैं।
आखिर कौन हैं वो ???
मित्रों वो और कोई नही...
आपका "अंतर्मन" हैं...
बचपन से लेकर अब तक आपका अंतर्मन आपकी सारी बातों को जानता हैं, आपके सारे कर्मों को जानता हैं, आपके सारे अच्छे-बुरे कर्मो का लेखा-जोखा इसी अंतर्मन के पास हैं। बचपन से लेकर मृत्यु तक आपका मन पल-पल की रिकॉर्डिंग कर रहा होता हैं। और ये ही नही आपका हर कर्म... मन की मैमोरी में उस कर्म को "चित्रों" साथ... उस कर्म से जुड़ीं उसकी भावना (फिलिंग) के साथ Save कर रहा होता हैं। आपने आज तक जो पाप किया हैं वो आपके मन को पता हैं। आपने जो पुण्य किये वो आपके मन को पता हैं। आपके जीवन की हर घटना की जानकारी और उससे सम्बंधित बने भाव का हर-पल आपका मन रिकॉर्ड कर रहा होता हैं।
और....
मरणोंपरान्त आपके मन में रिकॉर्ड इन्ही ""गुप्तचित्रों"" और इनके साथ जुडी भावनाओं (फिलिंग) के आधार पर ही आपके अगले जन्म का निर्धारण आपके द्वारा ही हो जाता हैं। मृत्यु के समय इस जन्म में बने सभी भावों के अनुसार उनके फलों को अगले जन्म में ट्रांसफर कर दिया जाता हैं। मित्रों सारा का सारा कंप्यूटर सिस्टम आपमें ही सेट हैं। सब का सब एक निश्चित प्रोग्रामिंग के तहत संपन्न होता जाता हैं। आप क्या सोचते हो कंप्यूटर आप ही बना सकते हो ? कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सिर्फ मनुष्य को ही आती हैं। अरे कंप्यूटर... इंसान ने बनाया और इंसान को भगवान् ने बनाया, तो इंसान को बनाने वाला भगवान् क्या प्रोग्रामिंग नही समझता ? हा हा हा...
मित्रों स्वर्ग में बैठा ये ""चित्रगुप्त"" और कोई नही... बल्कि जन्म से लेकर मृत्यु तक... आपके अंतर्मन में रिकॉर्ड हुए इन "गुप्तचित्रों" को हीं "चित्रगुप्त" कहा गया हैं। और इन्ही गुप्तचित्रों के साथ-साथ हमारे पाप-पुण्य का भी ब्यौरा जुड़ा होता हैं जो हमारे द्वारा ही डाला होता हैं। भाई आप जो भी कर्म कर रहे हो वो आपको पता है कि कोनसा पाप हैं और कोनसा पुण्य हैं। जैसे आप झूठ बोल रहे हो या चोरी कर रहे हो.. तो आपके मन को पता है की आप ये पाप कर रहे हो। बस फिर क्या सिस्टम हमारे द्वारा ही फीड किये हुए पाप-पुण्य का आंकलन कर अगली दिशा तय कर देता हैं।
मित्रों गीता के आँठवे अध्याय के छटे श्लोक में देखो क्या लिखा हैं। हालाँकि मुझे संस्कृत नही आती हैं पर गीता पढ़ते समय मैं उसके हिंदी में दिये अनुवाद को गहराई में जाकर समझने का प्रयास करता हूँ।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः॥८- ६॥
इसका अर्थ हैं कि मनुष्य अपने जीवन के अंतकाल में अपने मन में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है वह उस उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वो सदा उसी भाव से भावित है।
यानी मरते समय हमारे मन में अलग-अलग विषयों के प्रति जैसा-जैसा भाव होता हैं उन्ही भावों के अनुसार अगले जन्म में हम उसी को प्राप्त होते हैं। जैसे मरते समय किसी व्यक्ति के अंतर्मन में संतान के प्रति ऐसा भाव बन जाये की "सन्तान ना होती तो अच्छा होता" तो उसके इसी भाव के अनुसार ""जन्मपत्री"" के पंचम भाव से पीड़ित वाली ग्रह-स्तिथि में जन्म दे दिया जाता हैं। और अगले जन्म में उसके सन्तान का अभाव रहता हैं, क्योकि मरते समय उसका सन्तान न होने का भाव बन गया। और अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे की सन्तान को देखकर मन मैं ऐसा भाव बना लें की मुझे अगले जन्म में ऐसी आज्ञाकारी सन्तान मिले तो अगले जन्म में उसे भावानुसार वैसी ही संतान सन्तान का सुख मिलता हैं।
मित्रों मैंने मात्र एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। अगला जन्म, और जन्मपत्री के ग्रह-नक्षत्रों का चुनाव मात्र एक संतान के विषय भाव से संपन्न नही होता बल्कि मरते समय उसके अंतर्मन में जीवन के अनुभव से जिस-जिस विषय के प्रति जैसा-जैसा भाव बनता हैं उन सभी भावों के अंत में जो फल निकलता हैं उसी के अनुसार नियमों के आधार पर जातक स्वयं अपनी जन्मकालीन "ग्रह-नक्षत्र" स्तथि का चुनाव कर सटीक समय पर उस जगह जन्म लेता हैं जो उसका भाव होता हैं। मित्रों इन जन्मकालीन "ग्रह-नक्षत्र" स्तथि के चुनाव में ईश्वर का कोई दखल नही होता हैं, ये सब का सब सिस्टम और नियमों के मुताबिक़ ही संपन्न होता हैं।
(मित्रों एक बात ध्यान रखे, यहाँ संतान सम्बंधी मैंने मात्र एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत किया हैं, पर इसके अलावा और भी बहुत से कारण होते हैं जिनसे संतान का अभाव रह सकता हैं।)
मित्रों मेरे शब्दों में कहूँ तो मन की माया बड़ी निराली हैं, मन ऊर्जावान हैं, और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उधर ही हो जाता हैं। संसार में जो भी कुछ घटित हो रहा हैं उसका मूल कारण हमारा ""ध्यान"" हैं।
मित्रों अब तो आपको समझ में आ गया होगा की हमारे जन्म और जन्मपत्री के निर्धारण में ईश्वर का कोई दखल नही होता... सबकुछ हमारे ही द्वारा संपन्न होता हैं। अगले आर्टिकल में इस बारे में हम और चर्चा करेंगे जिसमे पाप-पुण्य का निर्धारण हमारे द्वारा कैसे होता हैं, और जन्मकालीन ग्रहों का या पिछले जन्म के भावों का कैसा प्रभाव इस जन्म में होता हैं, और किन उपायों से उन पिछले जन्म के बुरे भावों के प्रभाव को काटा जा सकता हैं, या ज्योतिष की भाषा में कैसे ग्रहों के बुरे प्रभाव से मुक्त हुआ जा सकता हैं।
राधे-राधे...