आखिर क्या रहस्य छुपा हैं कछुए की आकृति वाली अँगूठी में।
मित्रों आजकल अधिकतर लोगों को कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी धारण किये हुए देखा जाता हैं।
पर क्या कछुऐ की अँगूठी वास्तव में सम्रद्धि लाती हैं ?
क्या इसके धारण करने से जीवन में खुशहाली आती हैं ?
आइये इसके पीछे क्या सिद्धांत काम कर रहा हैं उसको समझते हैं।
मित्रों आपने अक्सर मेरे लेख पढ़े होंगे। मैं हमेशा एक ही बात पर जोर देता हूँ कि, जीवन के इस सफर में आज हम जहाँ पर भी खड़े हैं, और जैसी भी स्तथि में हैं, उसका मूल कारण हमारा "ध्यान" हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उस और बहने लगता हैं। और हमारे मन के भावों की ऊर्जा ध्यान के माध्यम से जिस और बहती हैं, हम उसी को प्राप्त होते हैं या उस लक्ष्य को पाते हैं।
बस मित्रों कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी पहनने के पीछे भी यही "ध्यान" वाला सिद्धांत ही काम कर रहा हैं।
अँगूठी को धारण करने के बाद जब-जब हमारा "ध्यान" इसकी और जाता हैं तब कछुए के साथ जुडी धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर फ्लेश होती हैं। यह क्रिया स्वतः ही संपन्न होती हैं। मित्रों जब भी किसी वस्तु चित्र इत्यादि की तरफ हमारा ध्यान जाता हैं तब तत्काल उससे सम्बंधित धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर प्रकट हो जाती हैं। पूजा-पाठ इत्यादि के पीछे भी यही प्रयोजन हैं कि हम इनके माध्यम से ईश्वर से जुड़े रहे।
मित्रों कछुआ धैर्य, शांति, निरन्तरता(Continuity), लक्ष्य और सम्रद्धि का प्रतिक हैं। कछुए और खरगोश की कहानी तो सभी जानते हैं कि कैसे कछुए ने Continuity रखते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया। और कछुआ लक्ष्मी जी का प्रिय भी हैं। क्योकि लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी, इसलिए समुद्र से निकलने वाले सभी जीव मछली, कौड़ी, शिप, कछुआ इत्यादि सभी लक्ष्मी जी के मित्र माने जाते हैं।
मित्रों कछुए को देखते ही उससे जुड़ी सारी धारणाओं की तरफ हमारा "ध्यान" चला ही जाता हैं, और इसी के चलते हमारे ध्यान की ऊर्जा का प्रवाह उस और हो जाता हैं, जिसके चलते हम धैर्य और शांत स्वभाव को रखते हुए समय पर लक्ष्य का भेदन कर सम्रद्धि को प्राप्त करते हैं।
मित्रों यहाँ में एक बात और कहना चाहूँगा कि कछुए की आकृति वाली अँगूठी अगर किसी बच्चे को पहना दी जाये या किसी ऐसे व्यक्ति को पहना दी जाये जिसे कछुए से जुड़ी इन धारणाओं का ज्ञान नही, तो उसके लिए ये अँगूठी मात्र एक आभूषण साबित होगी। उसे इसका कोई लाभ प्राप्त नही होगा। क्योंकि उसके मन की ऊर्जा का प्रवाह इस और नही होगा।
मित्रों हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे भी यही सिद्धांत काम करता हैं। इन सभी परम्पराओं से जुड़ी कथा-कहानियों के माध्यम से हमारे "ध्यान" की दिशा को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया जाता हैं। इसलिए कहते हैं "दिशा बदलो, दशा तो अपने-आप बदल जायेगी"। यहाँ दिशा बदलने का मतलब विचारों की दिशा बदलने से हैं।
मित्रों हमारे ऋषि-मुनियों को पता था कि इंसान इस रहस्य की गहराई को समझ नही पायेगा, इसलिये उन्ही सिद्धांतों को परम्पराओं का अमलीजामा पहना कर हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। और हर परम्परा के द्वारा हमारे ध्यान को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया।
मित्रों अपने गहन शोध के बाद मैंने जब इस "सिद्धांत" को समझा तो मैं हैरान रह गया कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषी-मुनियों और दार्शनिकों का चिंतन कितना गहरा रहा होगा, जिन्होंने इस सिद्धांत को समझकर अनेक ग्रंथो और परम्पराओं की रचनाएँ कर डाली।
राधे-राधे...
Astrologer & Philosopher
Gopal Arora