जो भी कर्म करो वो भगवान को समर्पित करके करो
क्योकि जो लोग भगवान् को समर्पित करके कर्म करते है उनके जीवन में किसी प्रकार का कष्ट और हानि नही आती।
मित्रों एक समय की बात हैं एक राजकुमार अपने पिता के मरणोपरांत राज्य का राजा बन बड़ी लगन के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा था। पर अनुभव की कमी के कारण वो हमेशा चिंतित और दुखी रहता था।
एक दिन उसके महल में एक संत आगमन होता हैं। राजा संत की बहुत अच्छी सेवा करता है। पर राजा को चिंतित देख कर संत राजा को चिंता का कारण पूछते हैं। तब राजा राज्य की प्रगती और उन्नती के बारे में अपनी चिन्ता बताते है। संत राजा की समस्या को भांप लेते है और राजा से कहते हैं कि राजन कुछ समय के लिए तुम अपना राज-पाठ मुझे दान में दे दो, फिर में सब कुछ ठीक कर दूँगा। संत के कथन से सहमत होकर राजा राज्य को दान में लिखकर संत की झोली में डाल देता है।
संत राजसिंहासन पर बैठ राजा को मंत्री बना देते हैं, और राज्य की देख-रेख का सम्पूर्ण जिम्मा राजा को सौंप देते हैं। राजा अपने मंत्री पद के कर्तव्य को निभाते हुए राज्य की सेवा में लग जाता हैं। कुछ समय बाद संत राजा से कहते है कि राजन में कुछ समय के लिए तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ, तब तक तुम मेरे राज्य का ध्यान रखना। संत की आज्ञा को एक राजा का आदेश मानकर राजा संत को विश्वास दिलाते है कि आपके आने तक में अपने दायित्व और कर्तव्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहूँगा।
संत के जाने के बाद राजा राज-पाठ की अपनी जिम्मेदारी को बहुत अच्छे ढंग से निभाते हैं। जिससे राज्य की प्रगति दिन-दुनी रात चौगुनी होने लगती हैं। कुछ माह बाद संत वापस आ जाते हैं, और राजा से पूछते हैं कि राजन मेरा राज-पाठ कैसा चल रहा हैं? राजा कहते है, महाराज राज्य में सभी और चंहुमुखी विकास हो रहा है, राज कोष में भी पहले से चार गुना वृद्धि हुई हैं, चारों और खुशहाली हैं और प्रजा भी बहुत सुखी हैं।
तब संत राजा से कहते हैं कि देखो राजन
इस राज-पाठ को पहले भी तुम हीं देखते थे, और अब भी तुम ही देख रहे हो। फर्क सिर्फ इतना हैं की पहले तुम इसे अपना समझ कर कर्म करते थे और अब तुम इसे मेरा समझते हुए अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हो।
कहने का तात्पर्य इतना ही हैं राजन कि इस संसार में जब तक तुम कोई कार्य अपना समझ कर करोगे तब तक दुखी ही रहोगे। इसलिये आज ही से तुम अपना सब कुछ भगवान् को समर्पित करदो और संसार के सारे कार्यो को भगवान् का समझ के करो।
क्योकि जो लोग भगवान् को समर्पित करके कर्म करते है उनके जीवन में किसी प्रकार का कष्ट-हानि और दुःख नही आते।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा...
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राधे-राधे...