ईश्वर किसी भी आडम्बर में रुची नही रखते बल्कि वे तो भाव के भूखे होते हैं।
आइये मित्रों ईश्वरीय प्रेम की एक सत्य घटना।
मित्रों अपने जीवन के एक काल में मीराबाई वृंदावन के एक मंदिर में ठाकुरजी को भोग लगाने के लिए रसोई पकाती थीं। वे भक्ती और ईश्वर प्रेम में इतना लीन रहती थी की सुबह उठते ही भजन गुन-गुनाते हुए बिना नहाये-धोये और बिना वस्त्र बदले ठाकुरजी के भोग की तैयारी करने लग जाती।
एक दिन मंदिर के प्रधान पुरोहित ने देखा कि मीरा अपने वस्त्रों को बिना बदले और बिना स्नान किए ही रसोई बना रही हैं। उन्होंने बिना नहाए-धोए भोग की रसोई बनाने के लिए मीरा को डांट लगा दी। पुरोहित ने उनसे कहा कि मीरा, ईश्वर यह अन्न कभी भी ग्रहण नहीं करेंगे।
पुरोहित के आदेशानुसार, दूसरे दिन मीरा ने भोग तैयार करने से पहले न केवल स्नान किया, बल्कि पूरी पवित्रता और खूब सतर्कता के साथ भोग भी बनाया। और शास्त्रीय विधि का पालन करने में कहीं कोई भूल न हो जाए, इस बात से भी वे काफी डरी रहीं।
मित्रों तीन दिन बाद पुरोहित के स्वप्न में ठाकुरजी आये और उन्होंने पुरोहित से कहा कि वे तीन दिन से भूखे हैं। उन्हें पहले जैसा भोजन नही मिल रहा। पुरोहित ने कहा प्रभु जरूर मीरा से कुछ भूल हो गई होगी, उसने भोजन बनाने में न शास्त्रीय विधान का पालन नही किया होगा और न ही पवित्रता का ध्यान रखा होगा। ईश्वर बोले-- नही पुरोहित जी ऐसा नहीं हैं बल्कि पिछले तीन दिनों से वह काफी सतर्कता के साथ भोग तैयार कर रही है और भोजन तैयार करते समय वह हमेशा यही सोचती रहती है कि उससे कहीं कुछ अशुद्धि या गलती न हो जाए। इस फेर में मैं उसका प्रेम तथा मधुरभाव महसूस नहीं कर पा रहा हूं। पुरोहित जी मुझे भोजन में वो रस नही मिल रहा जो पहले मिलता था, इसलिए यह भोग मुझे रुचिकर नहीं लग रहा है। ईश्वर की यह बात सुन पुरिहित हैरान रह गये।
अगले दिन पुरोहित ने मीरा से न केवल क्षमा-याचना की, बल्कि पहले की ही तरह उसी प्रेमपूर्ण भाव से भोग तैयार करने के लिए अनुरोध भी किया।
मित्रों कहानी से तात्पर्य ये हैं कि ईश्वर किसी भी आडम्बर में रुची नही रखते बल्कि वे तो भाव के भूखे होते हैं। ।
राधे-राधे...
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मित्रों इसी सन्दर्भ में एक सत्य और बताना चाहता हूँ आपको। आजकल अक्सर देखने को मिलता है की लोग ठाकुरजी को खुश करने के लिये बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और ऐसे में लोगों से बड़ी मात्रा में चन्दा लेकर भोग का आयोजन किया जाता हैं। मित्रों जरुरी नही हैं की सभी लोग भाव से चन्दा देते हैं, अधिकतर लोग दबाव में आकर पैसा तो दे देते हैं पर अन्दर ही अन्दर उन्हें और मेरे ठाकुर दोनों को कोसते हैं।
मित्रों मेरा ठाकुर तो प्रेम का भूखा हैं, उसे ऐसे अभक्तों के दिये हुए चन्दे के पैसो का भोग बिल्कुल गले नही उतरता। आयोजक लोग तो मात्र अपनी कीर्ति और मान-सम्मान के फेर में रहते हैं। उन्हें इस बात का बिलकुल ज्ञान नही कि ऐसा करके वे ठाकुरजी को खुश नही बल्कि उनके सही भक्तों का मान घटाकर अभक्तों को बढ़ावा दे रहे हैं।
मित्रो महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के छप्पन भोग को ठुकरा कर विदुरानी की साग-पुड़ी का भोजन करना पसंद किया था। क्योंकि बिदुरानी ने बड़े ही भाव से कृष्ण के लिये भोजन बनाया था। इसलिए मित्रों आप अपने घर में जो भी बनाए उसे बड़े प्रेम से ठाकुरजी के भोग लगाये, विश्वास मानिए मित्रों ठाकुर आपके घर की साग-पुड़ी के भोग को बड़े प्रेम से ग्रहण करेगा। आपके इस प्रेम से वो ठाकुर कभी भूखा नही रहेगा।
मित्रों ये बात अभक्तों के लिये बहुत कड़वी है...
पर क्या करूँ.... सत्य हमेशा कड़वा ही होता हैं।
राधे-राधे...