मित्रों "जीवन-दर्शन" के इस सफर में आपका हार्दिक स्वागत हैं। अपने जीवन के आज तक के सफ़र में मैंने जो दर्शन किया हैं, जो समझा हैं, जिस सत्य को पहचाना हैं, वो आप भी जाने ऐसा एक प्रयास है मेरा। मित्रों पेशे से मैं एक व्यापारी हूँ, पर बचपन से ही खोजी प्रवर्ति का रहा हूँ। ईश्वर के नियमों और सिद्धांतो को समझने के लिये मैंने धार्मिक ग्रंथो के साथ-साथ भूत-भविष्य को जानने वाले हस्त-रेखा, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि और इनसे सम्बंधित विषयों का भी अध्ययन किया हैं। पर फिर भी मुझे इनसे कोई संतुष्टि नही मिली। ज्योतिष विज्ञान के द्वारा सब-कुछ जानने के बाद भी एक अधूरा सा पन महसूस होता था। ऐसे में सत्य की खोज करते-करते ध्यान और दर्शन-शास्त्र से जुड़ गया। यहाँ मैंने ईश्वर के अनेक नियमों को जाना, पर फिर भी जब तक उसको ना पा लूँ तब तक अधूरा ही हूँ।
मित्रों सत्य की खोज और "जीवन" के वास्तविक स्वरुप को समझने की कला ही "दर्शन" हैं। जो व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करने तथा नई-नई बातों और रहस्यों को जानने में रूचि रखता हैं, और फिर भी उसकी जिज्ञासा शांत नही होती, वो दार्शनिक कहलाता हैं। दर्शन का आरम्भ जिज्ञासा से होता हैं। बिना ईच्छा या जिज्ञासा के ज्ञान संभव नहीं। जीवन क्या हैं, आत्मा क्या हैं, परमात्मा क्या हैं, जीवन का आदि अंत सत्य क्या हैं? यही दर्शन का विषय हैं।
राधे-राधे...

20 मार्च 2015

दुःख तो सभी के जीवन में बराबर होता हैं।


दुःख तो सभी के जीवन में बराबर होता हैं।

मित्रों एक बार एक नवयुवक किसी संत के पास पहुंचा और बोला महात्मा जी, मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ, कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय बताएं।

संत उसकी मानसिक स्तिथी को समझ कर बोले, वत्स पानी के ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो। युवक ने ऐसा ही किया, उसने एक मुट्ठी नमक एक ग्लास पानी में मिलाकर पिया। फिर संत ने पूछा वत्स, इसका स्वाद कैसा लगा ? युवक बोला बहुत ही खराब, एकदम खारा, युवक थूकते हुए बोला।

संत मुस्कुराते हुए बोले.. ऐसा करो एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक लो और मेरे पीछे-पीछे आओ। दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए। फिर संत बोले चलो अब इस नमक को पानी में डाल दो। युवक ने ऐसा ही किया। संत बोले अब इस झील का पानी पियो। युवक पानी पीने लगा... संत ने कहा वत्स बताओ अब इसका स्वाद कैसा है, क्या अभी भी तुम्हे ये खारा लग रहा है ? युवक बोला नहीं, ये तो मीठा है, बहुत अच्छा है।

संत युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले, वत्स सभी के जीवन में दुःख भी बिलकुल नमक की तरह ही होता हैं.. न इससे कम ना ज्यादा.. बस फर्क सिर्फ इतना ही है कि तुम उसे किस पात्र में ले रहे हो। इसलिए वत्स जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना करो कि खुद को बड़ा कर लो ग्लास मत बने रहो झील बन जाओ।

राधे-राधे...