कहते हैं मंत्र जपने से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं, सिद्धियाँ मिलती हैं, मनो कामनाएँ पूर्ण होती हैं इत्यादि-वित्यादि। मंत्रो को लेकर सभी लोगों की अलग-अलग धारणाएँ हैं। आम तौर पर सुनने में आता हैं की मंत्रो के माध्यम से निकलने वाली ध्वनि की तरंगो से सकारात्मक ऊर्जा निकलती हैं जिससे आस-पास का वातावरण शुद्ध होता हैं। हाँ यह बात वैज्ञानिक तौर पर भी सत्य साबित हो चुकी हैं कि मंत्रो से सकारत्मक ऊर्जा प्रवाहित होती हैं ।
पर क्यों सकारत्मक ऊर्जा प्रवाहित होती हैं ?
आखिर इसके गर्भ में हैं क्या ?
आइये मित्रों मेरी नजर में इनके पीछे क्या सिद्धांत काम करता हैं, समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों मंत्रों की सारी सफलता हमारे अवचेतन मन पर निर्भर होती है। संसार के सारे मंत्र चाहे जिस भाषा के भी हों, वे सभी अवचेतन मन के कारण ही काम करते हैं। आप किसी भाषा में मंत्र या प्रार्थना इत्यादि का जाप कर लें, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भाषा मात्र चेतन मन तक ही प्रभाव डालती हैं। गहरे में जो हमारे अंतर्मन का भाव होता है, अवचेतन मन उसी भाव से प्रभावित होकर उसे सच मानकर ठीक वैसी ही ऊर्जा को ब्रम्हांड से आकर्षित करने लग जाता है। आपके अंतर्मन में ऐसा हैं की फलां मंत्र या शब्द को जपने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी... तो ऐसा ही होगा। उस मंत्र या शब्द से सकारात्मक ऊर्जा ही निकलेगी। क्योंकि आपके अंतर्मन की प्रोग्रामिंग में इस बात को प्रोग्राम कर दिया जाता हैं, जिस कारण आपकी सोच या विचारों का प्रवाह सकारात्मकता की और हो जाता हैं।
मित्रों अक्सर हम सुनते हैं कि शब्द ब्रम्ह हैं,
शब्दों में बहुत शक्ति होती हैं। हाँ ये बात एक सीमा तक सत्य हैं। पर असलियत में शक्ति शब्द में नही बल्कि उसके अर्थ में होती हैं। आपका अवचेतन मन किसी शब्द का जैसा अर्थ जानता हैं वैसी ही ऊर्जा का संचार होता हैं। भगवान् शब्दों को नही सुनते बल्कि शब्दों के पीछे आपका भाव क्या हैं उसे सुनते हैं। आप क्या सोचते हैं कि हिन्दू धर्म में भगवान् मंत्रों को सुनकर फल देते हैं, और मुस्लिम धर्म में नमाज पढ़ने के बाद फल देते हैं, या क्रिश्चन धर्म में प्रार्थना सुनकर फल देते हैं। नही ऐसा नही हैं, ये तो सभी धर्मो में ईश्वर से जुड़ने के अपने-अपने तरीके बनाये हुए हैं। और बचपन से आपकी मानसिक प्रोग्रामिंग जैसी कर दी जाती हैं वैसे ही आपके भाव बन जाते हैं।
मित्रों शब्दों या भाषा में कोई शक्ति नहीं होती, शक्ति तो मन के भावों में होती हैं। इसलिए हर धर्म के, हर भाषा के, हर मंत्र काम करते नजर आते हैं। अगर बचपन में आपकी मानसिक प्रोग्रामिंग में लड्डू को मनोकामना पूर्ति करने वाला भगवान बता दिया जाता तो आप अगर लड्डू-लड्डू जपते तो भी ‘लड्डू’ शब्द भी वही काम कर करता जो ‘राम-राम’ या ‘अल्लाह-अल्लाह’ शब्द काम करता है। मित्रों हर धर्म के अलग-अलग भगवानों के नाम आपके अंतर्मन की स्वीकृति एवं श्रद्धा के कारण ही काम करते नजर आते हैं। अगर आप किसी भी मंत्र या भगवान को सिर्फ चेतन मन से जपते हैं या मानते हैं तो उसका कोई भी प्रभाव अवचेतन मन पर नहीं पड़ता। सारी साधनाएं, सारी सिद्धियां, सारी सफलताएं, उपलब्धियां अवचेतन मन के कारण होती हैं, जिसे हम ईश्वर की कृपा जैसे शब्दों से अलंकृत कर दिल को तसल्ली दे देते हैं।
अंत में मैं इतना कहूँगा कि सारी की सारी बातें इस अंतर्मन मन के कारण हैं। जीवन के सारे सुख-दुःख इसी अंतर्मन की प्रोग्रामिंग के कारण हैं। मैं ये नही कहता की आप मंत्रो के जाप या प्रार्थनाएँ या अन्य कोई धार्मिक अनुष्ठान ना करें। बल्कि में ये चाहता हूँ की आप मंत्र इत्यादि के जाप से पहले उनके पूर्ण अर्थ को समझलें। मंत्र का अर्थ अपनी भाषा में समझ लेने से उस मंत्र के प्रति आपके अवचेतन मन का भाव और भी पुष्ट हो जायेगा, जिससे आप शीघ्र ही श्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त कर पायेंगे।
राधे-राधे...
Astrologer & Philosopher
Gopal Arora