मित्रों "जीवन-दर्शन" के इस सफर में आपका हार्दिक स्वागत हैं। अपने जीवन के आज तक के सफ़र में मैंने जो दर्शन किया हैं, जो समझा हैं, जिस सत्य को पहचाना हैं, वो आप भी जाने ऐसा एक प्रयास है मेरा। मित्रों पेशे से मैं एक व्यापारी हूँ, पर बचपन से ही खोजी प्रवर्ति का रहा हूँ। ईश्वर के नियमों और सिद्धांतो को समझने के लिये मैंने धार्मिक ग्रंथो के साथ-साथ भूत-भविष्य को जानने वाले हस्त-रेखा, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि और इनसे सम्बंधित विषयों का भी अध्ययन किया हैं। पर फिर भी मुझे इनसे कोई संतुष्टि नही मिली। ज्योतिष विज्ञान के द्वारा सब-कुछ जानने के बाद भी एक अधूरा सा पन महसूस होता था। ऐसे में सत्य की खोज करते-करते ध्यान और दर्शन-शास्त्र से जुड़ गया। यहाँ मैंने ईश्वर के अनेक नियमों को जाना, पर फिर भी जब तक उसको ना पा लूँ तब तक अधूरा ही हूँ।
मित्रों सत्य की खोज और "जीवन" के वास्तविक स्वरुप को समझने की कला ही "दर्शन" हैं। जो व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करने तथा नई-नई बातों और रहस्यों को जानने में रूचि रखता हैं, और फिर भी उसकी जिज्ञासा शांत नही होती, वो दार्शनिक कहलाता हैं। दर्शन का आरम्भ जिज्ञासा से होता हैं। बिना ईच्छा या जिज्ञासा के ज्ञान संभव नहीं। जीवन क्या हैं, आत्मा क्या हैं, परमात्मा क्या हैं, जीवन का आदि अंत सत्य क्या हैं? यही दर्शन का विषय हैं।
राधे-राधे...

18 मार्च 2015

क्या विज्ञान छुपा हैं उपवास या व्रत ईत्यादि के पीछे।


उपवास, व्रत इत्यादि क्या हैं ?
उपवास या व्रत क्यों करवाये जाते हैं ?
क्या उपवास करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं ?

जी हाँ बिल्कुल हमारे धर्म-ग्रंथो में जितनी भी परम्पराएँ बनी हैं, उनको करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं, ऐसा शास्त्रों में भी बताया गया हैं। पर किसी को फल जल्दी मिलते हैं, किसी को देरी से और किसी को नही भी मिलते हैं।

ऐसा क्यों ?

मित्रों हमारे धर्म ग्रंथो में जितनी भी परम्पराएँ बनी हैं उस हर परम्परा के पीछे एक ही विज्ञान काम कर रहा हैं,
एक ही सिद्धांत काम कर रहा हैं।

जो लोग इस सिद्धांत की "कसौटी" पर खरा नही उतर पाते वे मनवांछित फलों से वंचित रह जाते हैं,
या जो जितने समय में उस "कसौटी" पर खरा उतर जाता हैं वो उतने समय बाद ही मनोवांछित फल प्राप्त करता हैं।

अब चाहे वो व्रत हो, उपवास हो, आरती हो, स्तुति हो, यज्ञ-हवन या मन्त्र जाप इत्यादि कुछ भी हो। इन सभी के सभी कर्मो में पीछे एक ही विज्ञान एक ही सिद्धांत काम कर रहा हैं।

""""""ध्यान""""""

मित्रों हर कर्म के द्वारा आपके "ध्यान" को एक लक्ष्य से निरंतर जुड़े रहने का मात्र एक प्रयोजन किया जा रहा हैं। ये व्रत, आरती, स्तुति, यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ या मंदिर की फेरी इत्यादि सभी कर्म मात्र माध्यम हैं आपके "ध्यान" को एकाग्र कर, "फल" तक पहुंचाने के। कर्म मात्र साधन है फल तक पहुँचने का, बाकी फल का निर्धारण तो भाव से होता हैं कि आपने किस भाव से व्रत इत्यादि किया हैं।

अगर व्रत इत्यादि कर्म से किसी का भला होता तो आज भिखारी सबसे धनवान होते। उन बेचारों के तो उपवास कभी-कभी पाँच-पाँच दिनों के हो जाते हैं। पर उन्हें ना तो वैभव-लक्ष्मी के व्रत का फल मिलता हैं और ना ही करवा-चौथ के व्रत का फल मिलता हैं। क्योंकि... उनके उपवास के पीछे उनका ""ध्यान"" किसी भी भाव से जुड़ा नही होता हैं।

इसके बावजूत जब हम कोई व्रत करते हैं तो हमारा ध्यान उस व्रत से मिलने वाले परिणाम की और कर दिया जाता हैं, जो हमें कथा-कहानियों के माध्यम से बताया जाता हैं। इन परम्पराओं से जुड़ी हुई कथा-कहानियें भी और कुछ नही, बस ये सब हमारे मानसिक भाव को गहरा और पुष्ट करने की एक प्रोग्रामिंग लेंग्वेज हैं, और कुछ नही।

मित्रों वैसे तो हर व्यक्ति का ध्यान जीवन भर अच्छे परिणामों को पाने की और ही रहता हैं। परन्तु फिर भी अधिकतर लोग उच्च परिणामों को पाने से वंचित रह जाते हैं। क्योंकि वे ध्यान के विज्ञान की इस कसौटी पर खरा नही उतर पाते। उनका ध्यान इतना  "गहरा" नही होता जितना होना चाहिये। ध्यान और उस ध्यान के प्रति विश्वास जितना गहरा होगा उतना ही हम ध्यान की कसौटी पर खरा उतर पायेंगे और शीघ्र ही मनोवांछित फलों को प्राप्त कर पायेंगे। इसलिये कहते हैं कि व्रत, उपवास, मन्त्र इत्यादि परम्पराओ में या ईश्वर में श्रद्धा और विश्वास मजबूत होना चाहिये। मित्रों किसी ने सत्य ही कहा हैं कि...

किसी चीज को सिद्दत से चाहो
तो सारी कायनात तुम्हे उसे मिलाने में लग जाती हैं।

इसलिये मित्रों आप जो भी व्रत, उपवास, पूजा-पाठ, हवन, मन्त्र या मंदिर की फेरी इत्यादि जो भी करते हैं उन्हें पूरे श्रद्धा-भाव के साथ कीजिये। यानी आपको उस गहरे विश्वास के साथ उस "ध्यान" रूपी सिद्धांत की कसौटी पर खरा उतरना हैं। व्रत इत्यादि के प्रति आपका ध्यान और विश्वास जितना गहरा होगा उतनी ही जल्दी आपको परिणामों की प्राप्ति होगी।

मित्रों इस मन का विज्ञान ये हैं कि ये मन "ऊर्जावान" हैं। इसको आत्मा... और आत्मा से ऊपर परमात्मा से "ऊर्जा" प्राप्त होती हैं। मन का "ध्यान" जिस और होता हैं, ऊर्जा का प्रवाह भी उसी और होने लगता हैं। और कर्म करते समय मन में जैसा भाव रखकर कर्म किया जाता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी मन में रखे भाव की तरफ बहने लगता हैं, और वही ऊर्जा आपको उस लक्ष्य तक पहुंचा देती हैं। या इस सिद्धांत की भाषा में कहूँ तो वो लक्ष्य स्वयं आप तक पहुँच जाता हैं।

मित्रों इस मन की माया बड़ी निराली हैं, इसके रहस्य बड़े गहरे हैं। और जो इस सिद्धांत को समझ जाता हैं, इसकी प्रकृति(नेचर) को समझ जाता हैं फिर उससे संसार की कोई चीज अछुती नही रह सकती।

राधे-राधे...