"महिमा राम नाम की"
रामनाम की औषधि खरी नियत से खाय।
अंगरोग लागे नहीं महारोग मिट जाय।।
एक समय की बात हैं,
एक राजा ने अपने महल में एक संत को सत्संग के लिए बुलाया। सत्संग पूरा होने के बाद राजा ने संत से कहा की गुरुवर राज्य की प्रगती और सुख शांति हेतु कोई मंत्र दीजिये। तब संत ने राजा को "राम" नाम का मंत्र दिया। राजा को कुछ ठीक नही लगा तो उसने कुछ देर बाद फिर संत से कहा की कोई मंत्र भी दे दीजिये।
संत ने गुस्से में आकर राजा से कहा अरे गधे इतना अच्छा मंत्र दिया फिर भी तू नही समझ पाया। अपने लिए गधे जैसा शब्द सुन राजा मन ही मन क्रोधित हो गया।
राजा को क्रोधित देख कर संत ने कहा राजन तुमको गधा कहा इसलिए बुरा लगा, क्योंकि तुम जानते हो की गधा क्या है। गधे का नाम सुनते ही उसकी छवि तुम्हारे सामने आ गई। और उससे तुम्हारा क्रोध जाग गया।
राजन जब गधे जैसे शब्द ने तुम्हे इतना लाल-पिला कर तुम्हारे क्रोध को जगा दिया और तुम्हारी मानसिक शांति को भंग कर दिया, तो सोचो "राम" के नाम में कितनी शक्ति और शान्ति होगी।
राजन शब्द ब्रम्ह हैं।
"शब्दों" की उर्जा मन को प्रभावित कर तन को गति देती हैं। और संसार के सारे कार्य शब्दों से संचालित होते हैं। बुरे शब्दों का प्रयोग करने से आसुरी शक्तिया जाग्रत होकर मानसिक उर्जा का नाश करती हैं। और अच्छे शब्दों के प्रयोग से देविय शक्तिया जाग्रत होती हैं। जिससे मानसिक और सांसारिक दोनों सुख प्राप्त होते हैं।
मंत्र का मतलब जिसके जपने से जिसके मन तर जाये उसे कहते है मंत्र (मन+तर=मंत्र)।
इसलिए राजन "राम" नाम के मंत्र को जपते रहो इसी से कल्याण होगा।
जय रामजी की..