धर्म से जीवन का रूपांतरण होता हैं।
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरुदेव से पूछा-
गुरुदेव, आप कहते हैं कि धर्म से जीवन का रूपान्तरण होता है। लेकिन इतने दीर्घ समय तक आपके चरणों में रहने के बावजूद भी मैं अपने में उस रूपान्तरण को महसूस नहीं कर पा रहा हूँ।
गुरुदेव मुस्कुराये और उन्होंने बोला कि- एक काम करो, थोड़ी सी मदिरा लेकर आओ। शिष्य चौंक गया पर फिर भी गुरु की आज्ञा को ध्यान में रखकर मदिरा ले आया।
गुरुदेव ने शिष्य से कहा- अब इससे कुल्ला करो। (भाई अपने शिष्य को समझाने के लिए गुरु को हर प्रकार के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं।) शिष्य मदिरा को लोटे में भरकर कुल्ला करने लगा। कुल्ला करते-करते लोटा खाली हो गया।
गुरुदेव ने पुछा- बताओ वत्स, तुम्हें नशा चढ़ा या नहीं ?
शिष्य ने कहा- गुरुदेव, नशा कैसे चढ़ेगा ? मैंने तो सिर्फ कुल्ला ही किया है। मैंने उसको कंठ के नीचे उतारा ही नहीं, तो नशा चढ़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
इस पर संत ने कहा- बस वत्स, इतने वर्षो से तुम धर्म का कुल्ला ही करते आ रहे हो। यदि तुम इसको गले से नीचे उतारते तो तुम पर धर्म का असर यानी रूपांतरण होता।
वत्स जो लोग केवल सतही स्तर पर धर्म का पालन करते हैं। जिनके गले से नीचे धर्म नहीं उतरता, उनकी धार्मिक क्रियायें और जीवन-व्यवहार में बहुत अंतर दिखाई पड़ता है। वे मंदिर में कुछ होते हैं, व्यापार में कुछ और हो जाते है और व्यवहार में कुछ और होते हैं। वे प्रभु के चरणों में कुछ और होते हैं एवं अपने जीवन-व्यवहार में कुछ और, धर्म ऐसा नहीं हैं, जहाँ हम बहुरूपियों की तरह जब चाहे जैसा चाहे वैसा स्वांग रच ले।
इसलिये वत्स धर्म स्वांग नहीं है, धर्म अभिनय नहीं है, अपितु धर्म तो जीने की कला है, एक श्रेष्ठ पद्धति है।
राधे-राधे...