ना तो मंदिर में भगवान् होते हैं,
और ना ही मूर्ती में भगवान् होते हैं।
फिर भी दोस्तों सत्य ये हैं कि...
मंदिर जाने से कल्याण होता हैं।
मंदिर की फैरी लगाने से कल्याण होता हैं।
मंदिर में पैसा चढाने से कल्याण होता हैं।
माता के चुनरी चढाने से कल्याण होता हैं।
आइये दोस्तों मंदिर इत्यादि जाने से कैसे कल्याण होता हैं इसके पीछे छुपे विज्ञान को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों अपनी भाषा में सीधे-साधे शब्दों में कहूँ तो "भगवान्" ना तो मंदिर में होता हैं और ना ही मूर्ती में होता हैं। भगवान् तो आपके मन में होता हैं। पर "मन" ही भगवान् होता हैं, इस सत्य को हम लोग मान नही पाते इसलिये मूर्ती या मंदिर का सहारा लेकर उसमे भगवान् देखते हैं।
मित्रों आप ये ना समझें की मैं कोई नास्तिक व्यक्ति हूँ। हालाँकि मैं जानता हूँ की भगवान् ना तो मंदिर में हैं और ना ही भगवान् मूर्ती में हैं, फिर भी ईश्वर की कृपा पाने के लिए मैं स्वयं मंदिर में जाता हूँ। आप सोच रहे होंगे कि भय्या पगला गये हैं, एक तरफ तो कहते हैं कि भगवान् ना तो मंदिर में हैं और ना ही मूर्ती में, और दूसरी तरफ कहते हैं कि मैं खुद ईश्वर की कृपा पाने मंदिर में जाता हूँ।
दोस्तों यह रहस्य बड़ा ही पेचीदा हैं। और संसार में आज तक बहुत कम लोग हैं जो इस Philosophy को समझ पायें हैं।
चलो ये बताओ की एक पत्थर की मूर्ती को भगवान् मानने वाला कौन हैं ? आपका मन... आपके ही ने उसे भगवान् माना ना। तो जिस मन ने एक पत्थर की मूर्ती को भगवान माना और पत्थर भगवान् हो गया, तो अब सोचो इस ईश्वर का चुनाव करने की शक्ति जिस मन के पास हैं वो मन खुद कितना शक्तिशाली होगा।
मित्रों अपने लेखों में मैं बार-बार कहता रहता हूँ कि यह "मन" ऊर्जावान हैं, और इसका "ध्यान" जिस भाव के साथ जिस विषय या वस्तु पर होता हैं, वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उधर होने लगता हैं। जैसे आपकी आस्था और विश्वास किसी भगवान् में या किसी भगवान् की मूर्ती में हैं, तो आपके मन की "ऊर्जा" का वैसा ही प्रवाह उस मूर्ती की और हो जायेगा कि ये मूर्ती भगवान् हैं। और ऐसे में मात्र आपका ही मन नहीं, बल्कि उस मंदिर में आस्था रखने वाले हजारों लोगों के मन की ऊर्जा का वैसा ही प्रवाह उस मूर्ती की और होता हैं। और उस मूर्ती पर लोगों के इसी ध्यान की वजह से उस मूर्ती के चारों और एक शक्तिशाली सकारत्मक चुम्बकीय क्षेत्र(Positive Magnetic Fild) यानी आभामंडल का विकास हो जाता हैं। और जितने अधिक लोगों का ध्यान उस मूर्ती पर होता हैं मूर्ती का आभामंडल उतना ही विशाल होता हैं।
अब इसके चलते अगर कोई व्यक्ति अपने पूर्ण विश्वास, आस्था और के साथ मन की गहराई से उसके प्रति समर्पित होकर चुनरी या पैसे इत्यादि चढ़ाता हैं, मंदिर जाता हैं या हाथ भी जोड़ता है तो उस व्यक्ति का आभामंडल, उस मूर्ती के आभामंडल से कनेक्ट हो जाता हैं। और हजारों लोगों के मन की ऊर्जा से पोषित उस मूर्ती के सकारात्मक आभामंडल से जुड़ने से उस व्यक्ति के स्वयं के आभामंडल का विस्तार होने लगता हैं। जिसका सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता हैं और इसके चलते मस्तिष्क में विचारों का परिवर्तन शुरू हो जाता हैं। और व्यक्ति अपने इन्ही बदले हुए विचारों की दिशा के कारण योग्य कर्म का चुनाव कर शुभ फल या श्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त करता हैं।
मित्रों ऐसे में हर आदमी ये सोचता हैं कि फलां मंदिर या मूर्ती में चमत्कार हैं। अरे भाई चमत्कार तो आपके मन में हैं मूर्ती में नही। यानी भगवान् तो आपके मन में हैं मूर्ती में नही।
तो मूर्ती में शक्ति आई कहाँ से ?
हजारों लोगों के मन के सकारात्मक "ध्यान" से।
दोस्तों शक्ति मूर्ती में नही बल्कि शक्ति तो आपके मन के ध्यान में होती हैं। अगर मूर्ती में शक्ति होती तो आज हर चौराहे पर खड़ी किसी नेता इत्यादि की मूर्ती से भी कोई न कोई चमत्कार निकल रहा होता।
एक बात और बताता हूँ कि देखो एक साधारण से फ़क़ीर का जीवन जी वाले "साईं-बाबा" को भी लोगो के मन की ऊर्जा ने भगवान् बना दिया। पर क्या "साईं-बाबा" भगवान् थे ? अरे साईं-बाबा ही क्या... भगवान् तो मैं और आप भी हैं। पर संसार के विषयों के विष में फंसे होने के कारण हम लोग अपनी भगवद्ता खो बैठे हैं।
बस मित्रों संसार में सब कुछ विज्ञान के नियमों पर चल रहा हैं। पर जब तक उसके पीछे छुपे विज्ञान का हमे ज्ञान नही तब तक वो चमत्कार ही होता हैं।
राधे-राधे...