ज्योतिषीय उपायों के पीछे छुपा विज्ञान...2
दोस्तों जैसा की पिछले पार्ट में मैंने बताया कि सभी ज्योतिषीय ईत्यादि उपायों के पीछे ब्रम्हांड की एक ही शक्ति काम कर रही हैं। और उसी शक्ति से सम्पूर्ण ब्रम्हांड संचालित हो रहा हैं।
वो शक्ति है "परमात्मा"।
दोस्तों, परमात्मा "ऊर्जा" के रूप में सम्पूर्ण ब्रम्हांड में व्याप्त है। ब्रहमांड की ये शक्ति(ऊर्जा,परमात्मा) ब्रम्हांड के हर कण, वनस्पति, जल, जीव और वायु में भी व्याप्त है।
ज्योतिषीय ईत्यादि उपायों में ब्रम्हांड के इन पदार्थो की उर्जा के साथ मानसिक उर्जा, वातावरण की उर्जा और ध्वनी की उर्जा आदि का विशेष संयोजन कर जातक को श्रेष्ठ परिणामों तक पँहुचाया जाता हैं।
दोस्तों ब्रम्हांड का हर पदार्थ अपने में उस परमात्मा की ऊर्जा समाये रहता हैं। और उपायों में पदार्थो इत्यादि में समाहित उसी ऊर्जा के विज्ञान को समझकर प्रयोग किया जाता हैं। मैं आपको कुछ उपाय और उनके पीछे छूपा विज्ञान बताऊँगा, फिर धीरे-धीरे आपको सभी उपायों के पीछे छुपा विज्ञान समझ में आ जायेगा। और इस विज्ञान के समझ लेने के बाद निश्चित ही आप अपने जीवन में बहुत परिवर्तन करने में सक्षम हो जायेंगे।
साढ़ेसाती में घोड़े की नाल या उसकी अंगूठी का प्रयोग का प्रयोग:-
दोस्तों इस उपाय के द्वारा "ऊर्जा-विज्ञान" के सिद्धांत पर घोड़े के मन के ऊर्जावान भावों का समावेश जातक के स्वभाव में कर दिया जाता हैं, जिसके बाद साढ़ेसाती का दुःख कम नही होता, बल्कि दुःख से मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती हैं, आत्मविश्वास बढ़ जाता हैं, और जातक बिना दुखी हुए परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ता रहता हैं।
दोस्तों घोड़े में बहुत ऊर्जा होती हैं, और वो कभी भी थकता नही होता। जब घोड़ा दौड़ता हैं तब उसे अपने लक्ष्य के अलावा कुछ दिखाई नही देता, उसे चाहे कितने भी कौड़े पड़े, पर उसे अपना लक्ष्य ही दीखता है। और वो अपने लक्ष्य को भेद कर ही दम लेता हैं। दोस्तों घोड़े के मन के यही भाव उसमे बैठे परमात्मा रूपी ऊर्जा पर तरंगित होकर, उसके पैर में लगी हुई नाल पर Save हो जाते हैं। और इसी घोड़े की नाल को जब दूकान, ऑफिस या घर के मुख्य दरवाजे पर लगाया जाता हैं तब इसके नीचे से निकलने वाले व्यक्ति के ऑरा से वे तरंगे टकराकर उसमें समाहित हो जाती हैं। इसी के चलते घोड़े के मन वाले ऊर्जावान भाव उस व्यक्ति के स्वभाव में उतर जाते हैं, और उसमे दुखों से मुकाबला करने की हिम्मत और आत्मविश्वास बढ़ जाता हैं। घोड़े की नाल की अँगूठी में भी यही सिद्धांत काम करता हैं।
आइये इस सिद्धांत में छुपे विज्ञान को और गहराई से समझते हैं।
दोस्तों परमात्मा "ऊर्जा" के रूप में सभी जीवों में व्याप्त हैं। जैसे एक कम्प्यूटर में बिजली के तार से ऊर्जा दी जाती हैं, और वह ऊर्जा पूरे कम्प्यूटर सिस्टम में बहने लगती हैं। कम्प्यूटर में बहती यह ऊर्जा आगे चलकर ऑपरेटर के द्वारा संचालित होकर अलग-अलग प्रोग्राम यानि सॉफ्टवेयर का रूप लेती हैं। अब ऑपरेटर अच्छा सॉफ्टवेयर बनाये या बुरा, ऊर्जा को उससे कोई मतलब नही। यानि ऑपरेटर वाइरस बनाये या एंटी वायरस, ऊर्जा को इससे कोई मतलब नही। पर हाँ बिना ऊर्जा के ये सब बनाना सम्भव भी नही, इन सभी को डेवलप करने के लिये ऊर्जा जरुरी हैं, और ऊर्जा को अलग-अलग प्रोग्रामों में तब्दील करने के लिये कम्प्यूटर सिस्टम भी जरुरी हैं। दोनों एक दूसरे के बिना कुछ नही।
हमारा शरीर भी कम्प्यूटर सिस्टम जैसा ही काम करता है, जिसमे परमात्मा ऊर्जा के रूप में पूरे शरीर व्याप्त होता हैं। हमारा मन ऑपरेटर होता हैं जिसपर बनने वाले विचार उसी परमात्मा की ऊर्जा पर तरंगित होकर आगे बढ़ते हैं। मन तक ऊर्जा निर्गुण होती हैं, पर मन में प्रवेश करते ही ऊर्जा मन के अनुरूप अच्छी-बुरी हो जाती हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह ऊर्जा निरन्तर मन की हर फिलिंग को अपने ऊपर Save कर हमारे ऑरा में स्टोर होती रहती हैं। और इन्ही तरंगों में समाहित जानकारी के आधार पर सिस्टम हमारे भविष्य और अगले जन्म की दिशा को तय करता हैं। कुल मिलाकर हमारा "मन" परमात्मा रुपी ऊर्जा को दिशा प्रदान करता हैं, मन ही परमात्मा की ऊर्जा को अच्छा या बुरा गुण प्रदान करता हैं।
दोस्तों हमारे ऑरा में तरंगों पर सवार हमारे मन के भाव, हमारे साथ रहने वाली वस्तुओं पर भी तरंगित(Copy) हो जाते हैं। जैसे घड़ी, मोबाइल, पैन, चश्मा, कपड़े या हमारे द्वारा प्रयोग किये जा रहे वाहन ईत्यादि सभी पर हमारे स्वभाव की तरंगें Copy हो जाती हैं। इसलिये तांत्रिक प्रयोगों में लक्ष्य के कपड़े ईत्यादि का प्रयोग कर उसे हानि पंहुचाई जाती हैं। जब कोई व्यक्ति हमारे प्रयोग की हुई वस्तुओं का जब कोई प्रयोग करता हैं तब उसके ऑरा में हमारे स्वभाव की तरंगें मिश्रित होकर सक्रिय होने लगती हैं। साढ़ेसाती में विज्ञान के इसी नियम को ध्यान में रखते हुए घोड़े की नाल या उससे बनी अँगूठी पहनने का उपाय बताया जाता हैं।
अक्सर कुछ लोग किन्ही दूसरों के प्रयोग की हुई पुरानी वस्तुएं काम में लेते हैं या खरीदते हैं, जैसे मोबाईल, टेलीविजन, पर्स, वाहन, कपड़े, फर्नीचर इत्यादि या जो भी वस्तु हम दूसरों के काम में ली हुई खरीदते हैं, तब उन लोगों की चुम्बकीय तरंगे भी उन वस्तुओं के साथ आ जाती हैं। दोस्तों ऑरा विज्ञान को समझने के बाद आपको उन्ही लोगों के प्रयोग की हुई वस्तुएं काम में लेनी चाहिये जो स्वभाव से अच्छे और संपन्न परिवार से हो, पर जिन लोगों का स्वभाव अच्छा न हो जो चरित्र हिन् हो, ऐसे लोगो द्वारा प्रयोग की हुई वस्तुएँ कभी काम में नही लेनी चाहिये।
दोस्तों सारा का सारा "ऊर्जा" और "मन" का खेल होता हैं। बिना ऊर्जा के शरीर कुछ काम का नही, और बिना शरीर के ऊर्जा का कोई रोल नही।
भारतीय दर्शन शास्त्र में बताई गई सभी बातें, उपाय, जप, व्रत, दान, धर्म, पूजा, पाठ, आरतियां, स्तुति, मंत्र, तंत्र, यंत्र इत्यादि और भी जितनी भी बातें हैं उन सभी के गर्भ में ऊर्जा के यही सिद्धांत छुपे हुए हैं।
दोस्तों सफर जारी रहेगा, आगे हम और उपायों की चर्चा करेंगे।
राधे-राधे...