नमस्कार दोस्तों, दोस्तों मैं आपको अक्सर बताता रहता हूँ कि सारा संसार चुम्बकीय तरंगों से संचालित हो रहा हैं। मानव शरीर एक कम्प्यूटर की तरह काम करता हैं। प्रारब्ध का लेखा-जोखा हमारी आत्मा में अदृश्य चुम्बकीय तरंगों के रूप में Save होता हैं, और इन्ही चुम्बकीय तरंगों का सीधा प्रभाव मन पर पड़ता हैं जिससे हमारा "स्वभाव" बनता हैं। हम हमारे "स्वभाव" के मार्ग से ही कर्मों इत्यादि का चुनाव कर प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों की यात्रा करते हैं। हमारे काम करने का तरीका, हमारे व्यवसाय का चुनाव, हमारे घर का रहन-सहन, हमारे साथ उठने-बैठने वाले लोग, हमारे घर मे आने-जाने वाले लोग या रिश्तेदार इत्यादि सभी हमारे स्वभावगत होते हैं, और हमारा स्वभाव प्रारब्धगत होता हैं, यानी हमारे स्वभाव को प्रारब्ध गति देता हैं। ओर हमारे इसी स्वभाव की चुनाव प्रणाली से सम्पन्न हर कर्म, वस्तु, मित्र, रिश्तेदार इत्यादि अपनी ऊर्जा देकर हमे प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों की ओर पहुँचाते हैं। दोस्तों यह बात में अक्सर बताता हूँ कि हर वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि का अपना एक आभामण्डल होता हैं। और उनके सम्पर्क में आने पर उनकी अच्छी-बुरी ऊर्जा का प्रभाव हम पर पड़ता हैं। हमारा स्वभाव प्रारब्ध के प्रभाव से उन्ही वस्तु, वनस्पति, जीव या परिस्थिती इत्यादि को चुनता हैं जिनसे मिलने वाली ऊर्जा हमे प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक ले जाती हैं। हमारा स्वभाव प्रारब्ध के प्रभाव से उन्हीं कर्मो को चुनता हैं जिधर प्रारब्ध को हमें ले जाना होता हैं। हमारा स्वभाव प्रारब्ध के प्रभाव के चलते उन्ही व्यवस्थाओं में रहना पसंद करता जिनसे मिलने वाली ऊर्जा हमें प्रारब्ध के निर्धारित परिणाम की ओर ले जाती हैं। हमारा स्वभाव प्रारब्ध के प्रभाव के चलते उन्ही वस्तुओं को खरीदना या रखना पसन्द करता हैं जिनसे मिलने वाली ऊर्जा हमें प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक ले जाती हैं। हमारा स्वभाव प्रारब्ध के प्रभाव के चलते उन्ही लोगों के साथ रहना पसंद करता हैं जिनसे मिलने वाली ऊर्जा हमें प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक ले जाती हैं। कहने का मतलब... हमारे द्वारा चुनी गई हर व्यक्ति, विषय, वस्तु, परिस्थिति हमे अपनी ऊर्जा देकर हमें प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक पहुंचाती हैं। हम उन्ही वस्तु, वनस्पति, व्यक्ति या परिस्थितियों का चुनाव करते हैं जिनकी ऊर्जा की हमारे प्रारब्ध को आवश्यकता होती हैं। दोस्तों परमात्मा के बनाये इस सिस्टम में प्रारब्ध से परिणामों तक का सफर इसी मार्ग द्वारा सम्पन्न होता हैं। सब कुछ आपके द्वारा ही स्वचलित कार्यप्रणाली द्वारा स्वत: ही सम्पन्न होता हैं, और आपको इसकी भनक तक नही लगती की, जिन कर्मों इत्यादि का चुनाव आप अपने जिस स्वभाव से कर रहे हैं वे सभी वस्तुएँ, व्यक्ति या परिस्थितियां इत्यादि आपको प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक ले जा रही होती हैं। दोस्तों जिस मन को आप अपना मानते तो वो तो स्वयं प्रारब्ध के प्रभाव में होता हैं। आप लाख कोशिश कर लो दुःखों को मिटाने की, पर आपका मन आपको वहीं ले जाता हैं जो प्रारब्ध में लिखा होता हैं। इसलिये कहते हैं कि... कोई लाख करे चतुराई रे... कर्म का लेख मिटे ना रे भाई... पर दोस्तों निराश मत होना... अपने इस आर्टिकल के माध्यम से मैं आपको "कर्म-सिद्धांत" का वो ज्ञान दूँगा जिसे समझकर आप अपने प्रारब्ध के निर्धारित बुरे परिणामों को काटने में सफल हो पायेंगे। करना सिर्फ इतना ही होगा कि आपको थोड़ा सतर्क होकर अपने आस-पास के वातावरण पर ध्यान देना होगा कि आप अपने आस-पास की वस्तुओं, मित्रों इत्यादि से कैसी ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं। हालाँकि आम तौर पर हमारे आस-पास की वस्तुओं या मित्रों इत्यादि का चुनाव हम हमारे प्रारब्ध के कारण ही करते हैं, पर "ऊर्जा-सिद्धांत" का ज्ञान प्राप्त कर हम सकारात्मक ऊर्जा वाली वस्तुएं, कर्मो या मित्रों इत्यादि का चुनाव कर प्रारब्ध से मिलने वाले बुरे परिणामों को पाने से बच सकते हैं, और अच्छे बेहतर परिणामों की और अग्रसर हो सकते हैं। दोस्तों इस आर्टिकल के अगले भाग में मैं आपको हमारे द्वारा स्वभाविक तौर पर संपादित होने वाले कुछ ऐसे कर्मों इत्यादि की जानकारी दूंगा जिनकी नकारात्मक ऊर्जा पाकर हम बुरे परिणामों के शिकार होते हैं। ओर साथ-साथ यह भी जानकारी दूँगा की कैसी वस्तुओं या मित्रों इत्यादि को अपनाकर उनकी सकारात्मक ऊर्जा पाकर हम हमारे भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं।
राधे-राधे...