Sixth Sense-13
दोस्तों, पिछले पार्ट में हमने प्रार्थना इत्यादि में छुपे विज्ञान को समझा कि हमारे ऋषि मुनियों ने कितना गहराई में जाकर चिन्तन-मनन कर इन आरतियों, स्तुतियों और प्रार्थनाओं की रचना कर दी। मित्रों इतना ही नही हमारे ऋषियों ने अनेक वेद, पुराण, ग्रन्थ और कथा कहानियों की रचना भी इसी भाव से की कि मनुष्य इन्हें सुनेगा तो उसके मन के भाव बदल जायेंगे, जिससे मनुष्य अपने कर्मो के सामान्य हीं नहीं बल्कि उन्ही कर्मो के श्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त कर सकेगा।
अब मित्रों आप सोच रहे होंगे की कथा-कहानियों में ऐसा क्या हैं जिनके सुनने मात्र से कर्मो के फलों को सामान्य से अधिक फल में बदला जा सकता हैं। मित्रों यही राज की बात हैं। इस सिद्धांत को बहुत कम लोग जानते हैं। आईये इसके विज्ञान को समझते हैं।
मित्रों जैसा की मैंने पहले बताया की हमारे शरीर की रचना बिलकुल कम्प्यूटर जैसी हैं, और कम्प्यूटर में जैसा सोफ्टवेयर डाला जाता हैं वो वैसा ही काम करता हैं। मित्रों आप सब लोग जानते है की कम्प्यूटर सोफ्टवेयर एक कमांड बेस प्रोग्राम होता हैं, जिसमे शब्दों के द्वारा कमांड देकर एक प्रोग्राम बनाया जाता हैं, और उसे कम्प्यूटर में इंस्टाल कर दिया जाता हैं। अब जैसा प्रोग्राम यानी सोफ्टवेयर डाला गया है वो वैसा ही काम करेगा।
ठीक इसी तरह ये प्रार्थना, कथा, कहानिये इत्यादि सभी उन सोफ्टवेयर की तरह होते है जिनकी प्रोग्रामिंग ऐसी की जाती है जिससे हमारे भावो में श्रेष्ठता आये। और इन कथा-कहानियों रूपी प्रोग्राम को शब्दों के द्वारा हमारे अवचेतन मन में इस इंस्टोल कर दिया जाता हैं। अब जैसे ही हम कम्प्यूटर में इंस्टाल सोफ्टवेयर को हम रन करते हैं तो वैसे ही परिणाम आते है जैसा सोफ्टवेयर में प्रोग्राम फीड होता है। वैसे ही जब हम कर्म करते है तब उसी अनुसार परिणाम आते हैं जैसा भाव यानी जैसा प्रोग्राम हमारे अवचेतन मन में फीड किया गया हैं।
इसलिये मित्रों में अक्सर कहता हूँ की हमें भावों का फल मिलता हैं कर्मो का नहीं। कर्म तो मात्र एक साधन है फल तक पहुँचने का।... पर शायद आप अभी इस बात को स्वीकार नही कर पायेंगे। इसलिये आइये इस तर्क को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों एक ही कर्म के अलग-अलग फल हो सकते हैं। जरुरी नही की हर कर्म का एक ही फल मिले। और इसका निर्धारण हमारे भावों से होता हैं। कर्म जिस भाव से किया जाता हैं फल वैसा ही मिलता हैं। इसका सूत्र इस प्रकार हैं..
अभाव-भाव-स्वभाव-प्रभाव-क्रिया-कर्म-फल
यानी जीवन में सबसे पहले अभाव महसूस होता हैं
फिर उस अभाव को पूरा करने का "भाव" पैदा होता हैं
उसी "भाव" से हमारा स्वभाव बनता हैं
हमारे स्वभाव से प्रकति(संसार) पर प्रभाव होता हैं
उसी प्रभाव से क्रिया यानी योजना बनती हैं
उसी क्रिया से कर्म होता हैं
और कर्म करने के बाद फल बनता हैं।
अब जैसा "भाव" रख कर कर्म किया जाता हैं अंत में उसी "भाव" के अनुसार "फल" मिल जाता हैं।
आईये इसे उदाहरण से समझते हैं।
मित्रों सीता-हरण और रुकमणी-हरण, दोनों कर्म एक से थे। पर परिणाम दोनों के भिन्न-भिन्न थे। ऐसा क्यों हुआ ?
कर्म तो एक ही था ना... फिर परिणाम दो कैसे हुए ?
क्योंकि मित्रों दोनों कर्म अलग-अलग भाव से किये गये थे। रावण ने सीता का हरण बुरे-भाव से किया और श्री कृष्ण ने रुक्मणी का हरण प्रेम-भाव से किया इसलिये दोनों के फल भिन्न-भिन्न थे।
दूसरा उदाहरण:- मित्रों अगर आप सड़क पर लाठी-चार्ज करोगे तो क्या होगा ? आपको जेल में डाल दिया जायेगा। पर दूसरी और अगर पुलिस वाले लाठी चार्ज करेंगे तो क्या होगा ? उन्हें जेल में नहीं डाला जायेगा, बल्कि प्रमोशन होगा या पुरस्कृत किया जायेगा। क्योंकि पुलिस वालों का भाव हिंसा मिटाने का था और आपका भाव हिंसा फैलाने का था।
मित्रों ऐसे कई सारे उदाहरण हैं जिनकी चर्चा हम अभी संभव नही। पर अब तो आपको समझ में आ ही गया हैं कि हमें कर्मों का फल नहीं बल्कि मन के भावों का फल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कल कुछ और चर्चा करेंगे, क्योंकि इस मन को समझना कोई छोटी बात नहीं।
मित्रों राणा ने मीरा को विष दिया था पर मन के विश्वास ने विष को भी अमृत बना दिया।
माता सीता ने तिनके में भाई देखा और उसमे भाई जैसी शक्ति आ गई।
मित्रो फिर कहता हूँ कि आपका ध्यान जिस भाव के साथ और गहरे विश्वास के साथ जिस और होता हैं, आपके मन की ऊर्जा शक्ति आपको वैसे ही परिणाम दे देती हैं।
मित्रों मन बहुत शक्तिशाली हैं, और मै जैसे-जैसे लिखता जा रहा हूँ, वैसे-वैसे रहस्यों की परते मेरे दृष्टिपटल पर खुलती जा रही हैं। मुझे खुद को नही पता की अगले पार्ट में, मैं क्या लिखने वाला हूँ। इसलिये मित्रों आपको रूचि हैं तो साथ चलते रहिये।
राधे-राधे...
दोस्तों, पिछले पार्ट में हमने प्रार्थना इत्यादि में छुपे विज्ञान को समझा कि हमारे ऋषि मुनियों ने कितना गहराई में जाकर चिन्तन-मनन कर इन आरतियों, स्तुतियों और प्रार्थनाओं की रचना कर दी। मित्रों इतना ही नही हमारे ऋषियों ने अनेक वेद, पुराण, ग्रन्थ और कथा कहानियों की रचना भी इसी भाव से की कि मनुष्य इन्हें सुनेगा तो उसके मन के भाव बदल जायेंगे, जिससे मनुष्य अपने कर्मो के सामान्य हीं नहीं बल्कि उन्ही कर्मो के श्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त कर सकेगा।
अब मित्रों आप सोच रहे होंगे की कथा-कहानियों में ऐसा क्या हैं जिनके सुनने मात्र से कर्मो के फलों को सामान्य से अधिक फल में बदला जा सकता हैं। मित्रों यही राज की बात हैं। इस सिद्धांत को बहुत कम लोग जानते हैं। आईये इसके विज्ञान को समझते हैं।
मित्रों जैसा की मैंने पहले बताया की हमारे शरीर की रचना बिलकुल कम्प्यूटर जैसी हैं, और कम्प्यूटर में जैसा सोफ्टवेयर डाला जाता हैं वो वैसा ही काम करता हैं। मित्रों आप सब लोग जानते है की कम्प्यूटर सोफ्टवेयर एक कमांड बेस प्रोग्राम होता हैं, जिसमे शब्दों के द्वारा कमांड देकर एक प्रोग्राम बनाया जाता हैं, और उसे कम्प्यूटर में इंस्टाल कर दिया जाता हैं। अब जैसा प्रोग्राम यानी सोफ्टवेयर डाला गया है वो वैसा ही काम करेगा।
ठीक इसी तरह ये प्रार्थना, कथा, कहानिये इत्यादि सभी उन सोफ्टवेयर की तरह होते है जिनकी प्रोग्रामिंग ऐसी की जाती है जिससे हमारे भावो में श्रेष्ठता आये। और इन कथा-कहानियों रूपी प्रोग्राम को शब्दों के द्वारा हमारे अवचेतन मन में इस इंस्टोल कर दिया जाता हैं। अब जैसे ही हम कम्प्यूटर में इंस्टाल सोफ्टवेयर को हम रन करते हैं तो वैसे ही परिणाम आते है जैसा सोफ्टवेयर में प्रोग्राम फीड होता है। वैसे ही जब हम कर्म करते है तब उसी अनुसार परिणाम आते हैं जैसा भाव यानी जैसा प्रोग्राम हमारे अवचेतन मन में फीड किया गया हैं।
इसलिये मित्रों में अक्सर कहता हूँ की हमें भावों का फल मिलता हैं कर्मो का नहीं। कर्म तो मात्र एक साधन है फल तक पहुँचने का।... पर शायद आप अभी इस बात को स्वीकार नही कर पायेंगे। इसलिये आइये इस तर्क को समझने का प्रयास करते हैं।
मित्रों एक ही कर्म के अलग-अलग फल हो सकते हैं। जरुरी नही की हर कर्म का एक ही फल मिले। और इसका निर्धारण हमारे भावों से होता हैं। कर्म जिस भाव से किया जाता हैं फल वैसा ही मिलता हैं। इसका सूत्र इस प्रकार हैं..
अभाव-भाव-स्वभाव-प्रभाव-क्रिया-कर्म-फल
यानी जीवन में सबसे पहले अभाव महसूस होता हैं
फिर उस अभाव को पूरा करने का "भाव" पैदा होता हैं
उसी "भाव" से हमारा स्वभाव बनता हैं
हमारे स्वभाव से प्रकति(संसार) पर प्रभाव होता हैं
उसी प्रभाव से क्रिया यानी योजना बनती हैं
उसी क्रिया से कर्म होता हैं
और कर्म करने के बाद फल बनता हैं।
अब जैसा "भाव" रख कर कर्म किया जाता हैं अंत में उसी "भाव" के अनुसार "फल" मिल जाता हैं।
आईये इसे उदाहरण से समझते हैं।
मित्रों सीता-हरण और रुकमणी-हरण, दोनों कर्म एक से थे। पर परिणाम दोनों के भिन्न-भिन्न थे। ऐसा क्यों हुआ ?
कर्म तो एक ही था ना... फिर परिणाम दो कैसे हुए ?
क्योंकि मित्रों दोनों कर्म अलग-अलग भाव से किये गये थे। रावण ने सीता का हरण बुरे-भाव से किया और श्री कृष्ण ने रुक्मणी का हरण प्रेम-भाव से किया इसलिये दोनों के फल भिन्न-भिन्न थे।
दूसरा उदाहरण:- मित्रों अगर आप सड़क पर लाठी-चार्ज करोगे तो क्या होगा ? आपको जेल में डाल दिया जायेगा। पर दूसरी और अगर पुलिस वाले लाठी चार्ज करेंगे तो क्या होगा ? उन्हें जेल में नहीं डाला जायेगा, बल्कि प्रमोशन होगा या पुरस्कृत किया जायेगा। क्योंकि पुलिस वालों का भाव हिंसा मिटाने का था और आपका भाव हिंसा फैलाने का था।
मित्रों ऐसे कई सारे उदाहरण हैं जिनकी चर्चा हम अभी संभव नही। पर अब तो आपको समझ में आ ही गया हैं कि हमें कर्मों का फल नहीं बल्कि मन के भावों का फल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कल कुछ और चर्चा करेंगे, क्योंकि इस मन को समझना कोई छोटी बात नहीं।
मित्रों राणा ने मीरा को विष दिया था पर मन के विश्वास ने विष को भी अमृत बना दिया।
माता सीता ने तिनके में भाई देखा और उसमे भाई जैसी शक्ति आ गई।
मित्रो फिर कहता हूँ कि आपका ध्यान जिस भाव के साथ और गहरे विश्वास के साथ जिस और होता हैं, आपके मन की ऊर्जा शक्ति आपको वैसे ही परिणाम दे देती हैं।
मित्रों मन बहुत शक्तिशाली हैं, और मै जैसे-जैसे लिखता जा रहा हूँ, वैसे-वैसे रहस्यों की परते मेरे दृष्टिपटल पर खुलती जा रही हैं। मुझे खुद को नही पता की अगले पार्ट में, मैं क्या लिखने वाला हूँ। इसलिये मित्रों आपको रूचि हैं तो साथ चलते रहिये।
राधे-राधे...