मित्रों "जीवन-दर्शन" के इस सफर में आपका हार्दिक स्वागत हैं। अपने जीवन के आज तक के सफ़र में मैंने जो दर्शन किया हैं, जो समझा हैं, जिस सत्य को पहचाना हैं, वो आप भी जाने ऐसा एक प्रयास है मेरा। मित्रों पेशे से मैं एक व्यापारी हूँ, पर बचपन से ही खोजी प्रवर्ति का रहा हूँ। ईश्वर के नियमों और सिद्धांतो को समझने के लिये मैंने धार्मिक ग्रंथो के साथ-साथ भूत-भविष्य को जानने वाले हस्त-रेखा, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि और इनसे सम्बंधित विषयों का भी अध्ययन किया हैं। पर फिर भी मुझे इनसे कोई संतुष्टि नही मिली। ज्योतिष विज्ञान के द्वारा सब-कुछ जानने के बाद भी एक अधूरा सा पन महसूस होता था। ऐसे में सत्य की खोज करते-करते ध्यान और दर्शन-शास्त्र से जुड़ गया। यहाँ मैंने ईश्वर के अनेक नियमों को जाना, पर फिर भी जब तक उसको ना पा लूँ तब तक अधूरा ही हूँ।
मित्रों सत्य की खोज और "जीवन" के वास्तविक स्वरुप को समझने की कला ही "दर्शन" हैं। जो व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करने तथा नई-नई बातों और रहस्यों को जानने में रूचि रखता हैं, और फिर भी उसकी जिज्ञासा शांत नही होती, वो दार्शनिक कहलाता हैं। दर्शन का आरम्भ जिज्ञासा से होता हैं। बिना ईच्छा या जिज्ञासा के ज्ञान संभव नहीं। जीवन क्या हैं, आत्मा क्या हैं, परमात्मा क्या हैं, जीवन का आदि अंत सत्य क्या हैं? यही दर्शन का विषय हैं।
राधे-राधे...

22 नवंबर 2017

सफर, प्रारब्ध से परिणामों तक का...Part-3

नमस्कार दोस्तों,

दोस्तों पिछले दो आर्टिकल में मैंने आपको बताया कि हम सभी प्रारब्ध से बने स्वभाव से व्यक्ति, वस्तु, कर्म इत्यादि का चुनाव कर उनके आभामण्डल से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के सहारे प्रारब्ध के निर्धारित परिणामों तक पहुँचते हैं। कहने का मतलब हम उन्ही वस्तु, व्यक्ति, कर्म इत्यादि को चुनते हैं जिनकी ऊर्जा की हमारे प्रारब्ध की आवश्यकता होती हैं।

इसके साथ-साथ पिछले पार्ट में मैंने बहुत से ऐसे कर्मो के उदाहरण भी बताये जिनके कारण भविष्य में हमे बुरे परिणाम मिलते हैं। दोस्तो जैसे जन्मपत्री, हस्तरेखा इत्यादि से भविष्य देखा जाता हैं ठीक इसी प्रकार ऊर्जा-विज्ञान के ज्ञान द्वारा किसी व्यक्ति में कर्मों इत्यादि को देखकर उसके भविष्य का पता चल जाता हैं।

दोस्तों प्रारब्ध से परिणामों का सफर इसी प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ता हैं। हमारे सम्पर्क में आने वाली हर वस्तु, व्यक्ति, विषय की ऊर्जा का प्रभाव हमारे आभामण्डल पर पड़ता हैं और इन्ही से ऊर्जा पाकर हम परिणामों का सफर तय करते हैं। हमारे मन-मस्तिष्क पर हमारे आस-पास रहने वाले लोगों और वस्तुओं की ऊर्जाओं का प्रभाव इतना सूक्ष्म तरीके से पड़ता हैं, जिसकी भनक तक हमारे जाग्रत मन(कोंसियसनेस) तक को नही पड़ पाती।

आइये आभामण्डल के बारे में कुछ विस्तार से समझते हैं कि कैसे हर वस्तु, व्यक्ति, कर्म इत्यादि की ऊर्जा हमे प्रभावित करती हैं।

दोस्तों संसार मे हर जीव, व्यक्ति, वस्तु, वनस्पति, पेड़, पौधे, पहाड़, घर, दुकान ,ऑफिस, का एक आभामण्डल होता हैं। आभामण्डल वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि के चारों तरफ गोलाकार आकृति लिये अदृश्य चुम्बकीय तरंगों का एक घेरा होता हैं। इस घेरे में उस वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि के गुण इत्यादि का डेटा चुम्बकीय तरंगों के रूप में विद्यमान होता हैं। हर वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि अपने आभामण्डल में समाहित इन चुम्बकीय तरंगों द्वारा अपने गुण-अवगुण का प्रभाव अपने आस-पास के वातवरण में छोड़ते हैं। जैसे चंदन की लकड़ी जहाँ पड़ी होती हैं वहाँ अपनी खुशबू फैला देती हैं, पर क्या इस खुशबू का कोई रूप दिखाई देता हैं ? या क्या खुशबू की तरंगें हमे आती हुई दिखती हैं ? नही दिखती ना... पर फिर भी चन्दन की उपस्थिती का प्रभाव वहाँ के वातवरण में मेहसूस होता हैं, उसका प्रभाव वहाँ के वातावरण को प्रभावित करता हैं। ठीक ऐसे ही हर संसार की हर वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि की उपस्थिति अदृश्य चुम्बकीय तरंगों के द्वारा अपने गुण-अवगुण का प्रभाव वहाँ के वातावरण पर छोड़ती हैं।

यहाँ एक बात बता देता हूँ कि संसार मे व्याप्त हर वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि की चुम्बकीय तरंग की एक अलग गन्ध भी होती हैं। हमारे मस्तिष्क में जिन तरंगों की जानकारी पहले से अपडेट होती हैं उन तरंगों को हमारी नासिका के सेंसर रीड कर डिकोड कर देते हैं। पर जिन वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि की तरंगों की जानकारी मस्तिष्क को नही होती उनको नासिका के सेंसर डिकोड नही कर पाते, पर... फिर भी उसकी उपस्थिती का प्रभाव हमारे स्वभाव पर ओर आस-पास के वातावरण पर जरूर पड़ता हैं। अगर इस सिद्धांत पर आपको विश्वास नही होता तो श्वान(कुत्ते) की तरफ ध्यान दीजिये, श्वान संदिग्ध व्यक्ति की गंध की तरंगों से ही उस व्यक्ति को पकड़ पाता हैं।

कथाओं में एक ऐसा प्रसंग मैने सुना था कि..
एक समय की बात हैं, नारद ऋषि भगवान विष्णु से मिलने विष्णुलोक गये। भगवान विष्णु ध्यान में लीन थे। माँ लक्ष्मी ने विधिवत आदर-सत्कार कर उन्हें आसन दिया।
पर उनके प्रस्थान करते ही द्वारपालों को बुलाकर उस स्थान की अच्छे से सफाई कराई। जाते-जाते इस घटना को नारद ऋषि ने देख लिया, ओर पुनः जाकर पूछा कि माते, मैं जिस आसन पर बैठा उसकी इतनी सफाई का क्या कारण? तब माँ लक्ष्मी ने बताया कि ऋषिवर प्रथम तो आप निगुरे हैं, आपका कोई गुरु नही, और दूसरा स्वभावगत आप इधर की बात उधर करते हैं, इसलिये जिस आसन पर आप विराजे थे उस जगह आपके आभामण्डल की तरंगें उपस्थित थी, और हमारे लोक में आपके स्वभाव की इन तरंगों के प्रभाव से कोई विवाद न हो इस हेतू यह साफ-सफाई की गई।

दोस्तों कहने का मतलब ये हैं कि "आभामण्डल" के प्रभाव से जब भगवान भी नही बच पाते तो हम इंसान क्या चीज हैं। अक्सर आपने देखा होगा कि बड़े-बड़े सन्त महापुरुष आम लोगों से एक सीमित दूरी बनाये हुए रखते हैं, पता हैं क्यों ? वे जानते हैं कि भले ही वे कितने भी ज्ञानी क्यों न हो... पर आम व्यक्ति के नकारात्मक आभामण्डल के प्रभाव से वे भी नही बच पायेंगे।

दोस्तो जो लोग आभामण्डल ओर ऊर्जा के जानकार होते हैं वे अपने इस ज्ञान का बखूबी लाभ उठाते हैं। कुछ समय पहले हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सूट की नीलामी करीब 4.31 करोड़ में सम्पन्न हुई, जब कि सूट की कीमत मात्र 10 लाख रुपये थी। तो जिस व्यक्ति ने सूट खरीदा, क्या वो जानता नही था कि इस सूट की कीमत मात्र 10 लाख हैं ? वह जानता था... पर उसने दाम सूट के नही दिये... बल्कि उसने सूट में समाहित मोदी की उस ऊर्जा के दाम दिये जिस ऊर्जा से आज सम्पूर्ण विश्व प्रभावित हैं। 

दोस्तों बड़े-बड़े लोगों के प्रयोग की हुई छोटी से छोटी वस्तु भी करोड़ो रुपयों में नीलाम होती हैं, और ये दाम उस वस्तु का नही... बल्कि उसमे समाहित ऊर्जा का होता हैं।

तो दोस्तों इन उदाहरणों से ये बात आप अच्छे से समझ गये हैं कि हर वस्तु, वनस्पति, जीव इत्यादि अपने गुण-अवगुण का प्रभाव उपस्थित वातावरण में छोड़ते हैं, और उनका अच्छा-बुरा प्रभाव हमारे मन पर पड़ता हैं।

मित्रों अगले आर्टिकल में इस विषय सम्बन्धी और चर्चा करेंगे कि हमें कैसे लोगों के साथ रहना चाहिये, अच्छे लोगों की ऊर्जा का कैसे लाभ उठाना चाहिये और बुरे लोगों की ऊर्जा को कैसे नष्ट करना चाहिये।

राधे_राधे...