Sixth Sense-14
मित्रों पिछले पार्ट में हमने कथा-कहानियों के पीछे छुपे विज्ञान को समझा, कि कैसे इनको एक प्रोग्राम की तरह हमारे अवचेतन मन तक पहुँचा कर हमारे मन के भावों को बदल हमारे ध्यान के साथ जोड़ दिया जाता हैं जिससे हम, हमारे कर्मो के सामान्य से अधिक और श्रेष्ठ परिणामों को पा सके।
मित्रों जैसा की मैंने पहले बताया की हमें कर्मों का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं। बिना भाव के तो साधारण फल ही प्राप्त होते हैं। अब व्रत के सिद्धांत को ही ले लो, अगर हम किसी दिन ऐसे ही भूखे रह जाए तो परिणाम स्वरूप मात्र हमारे पेट की आँतो की सफाई होगी और कुछ नहीं। पर अगर हमने कोई व्रत रखा हैं तो उस सामान्य परिणाम के साथ-साथ हमें वो भी फल मिलेगा जिसका हमने व्रत रखा हैं। मित्रों मैने बार-बार कहा हैं कि हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे एक ही विज्ञान काम कर रहा हैं, और वो हैं हमारे ध्यान की दिशा को बदलना। व्रत के द्वारा भी यही किया जाता हैं। पूरे दिन में जब भी हमे भूख महसूस होती हैं तब इसके चलते हमारा ध्यान एक ही और जाता हैं कि फलां व्रत किया हैं जिससे ये फल मिलेगा।
जैसे किसी स्त्री ने तीज का व्रत रखा हैं तो उसके फल स्वरूप उसके पति की आयु बढ़ेगी इत्यादि-वित्यादि। अगर किसी ने वैभव-लक्ष्मी का व्रत रखा है तो उसे लक्ष्मी का वैभव प्राप्त होगा। इसके बावजूत मित्रो अक्सर हम ये भी सुनते है की व्रत की कथा का माह्त्मं सुनने से ही व्रत फलता हैं। मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मुझे इसका विज्ञान समझ में आया कि व्रत की कथा सुनने से हमारा भाव पुष्ट हो जाता हैं, और इन्ही भावों के चलते हमारा ध्यान श्रेष्ठ परिणामों की और हो जाता है, जिससे हम व्रत के श्रेष्ठ परिणाम को पाते हैं।
मित्रों कितने आश्चर्य की बात है कि इन सभी व्रतों में कर्म एक जैसा ही होता है, भूखा रहना... पर "फल" सबके अलग-अलग। जिस भाव से व्रत किया जाता हैं उसी भाव का फल मिलता हैं। पर बिना भाव के सामान्य से अधिक फलों को नही पाया जा सकता। मित्रों अगर ऐसा होता तो आज भिखारी सबसे आमिर, सुखी और वैभवशाली होते, क्योंकि उनके तो ऐसे व्रत कई-कई दिनों तक के हो जाते हैं। पर मित्रों उनके साथ ऐसा कुछ नही होता क्योंकि वे ज्ञान के अभाव में भाव को नही बना पाते। और भूख के कारण अक्सर मौत के शिकार हो जाते हैं।
मित्रों इतने उदाहरणों को प्रस्तुत करने के बाद मैं समझता हूँ की आपके मन में अब ये बात क्लीयर हो गई होगी कि, हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं। और हर कर्म के साथ अच्छे भावों को जोड़कर उत्तम फलों को प्राप्त किया जा सकता हैं। फिर भी चलिये एक छोटी सी कथा द्वारा कर्म के साथ अच्छे-बुरे भावों के परिणाम बताता हैं।
मित्रों एक समय की बात है एक सन्यासी अपनी कुटिया के बाहर बैठकर रोज परमात्मा का ध्यान लगाता था। उसकी कुटिया के सामने एक वेश्या का भी घर था। सन्यासी रोज ध्यान धरते-धरते वेश्या के कर्मो को देखकर दिनभर, मन ही मन यह विचार करता रहता की देखो ये कितना नीच कर्म कर रही है और ईश्वर द्वारा मिली इस देह को पाप कर्म में लिप्त कर अपना नरक बना रही हैं।
वही दूसरी और वो वेश्या सन्यासी को रोज भगवान् का ध्यान लगाते देख यह चिंतन करती थी की देखो साधू महात्मा कितने पुण्यशाली हैं जो हमेशा भगवान् के ध्यान में लीन रहते हैं।
मित्रों पूरे जीवन काल तक दोनों का चिंतन एक दूसरे के प्रति ऐसा ही बना रहा। मरणोपरांत जब दोनों ऊपर जाते है तब भगवान् अपने दूतों से वेश्या को "स्वर्ग" भेजने का और साधू को "नरक" में डालने का फैसला सुनाते हैं। भगवान् का फैसला सुनकर साधू, भगवान् से कहता है कि प्रभु इस वेश्या ने जीवन भर अपनी देह को पाप कर्मो में लगाए रखा और मैंने जीवन भर इस देह को आपके ध्यान में लगाके रखा, फिर इसे स्वर्ग और मुझे नरक क्यों?
भगवान् ने कहा साधू महात्मा आपका कथन बिल्कुल सत्य है। आपने जीवन भर अपनी देह को जप या ध्यान में लगाये रखा। परन्तु तन से भले ही आप मेरा नाम जप रहे थे, पर आपका मन का "ध्यान" तो हमेशा वेश्या के पाप कर्मो के चिंतन में लगा रहता था। वहीँ दूसरी और ये वेश्या रोज आपको देखकर एक हीं ध्यान करती, कि साधू महात्मा कितने पुण्यशाली है जो हमेशा भगवान् का ध्यान लगाते है। और आप हीं को देखने के साथ-साथ इसका ध्यान मुझसे जुड़ा रहता।
महात्मा जी कर्म भले ही अच्छे हो, पर जब तक आपका ध्यान संसार की बुराइयों में है, आपके मन के भाव बुरे है, तब तक मुक्ति संभव नही। महात्मा जी मंदिर में आकर लोग मुझे कितने हीं हाथ जोड़ले, दंडवत करले, प्रसाद चढ़ाले या और भी मुझे रिझाने के कोई कर्म करले, पर में वो कुछ नही देखता, में तो इतना कुछ करने के बाद भी उसके मन के भावों को हीं देखता हूँ कि संसार में रहते हुए उसका ध्यान किन बातों पर हैं, और उसके उन्ही भावों के अनुसार उसके कर्मफल को निर्धारित कर देता हूँ।
महात्मा जी लोग भले हीं रोज मंदिर जाते हो, परन्तु ये जरुरी नही की वे सुखी हो पायेंगे। क्योकि इस कलयुग में अधिकतर लोग अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु मन में बुरे भाव रखकर मुझे रिझाने का प्रयास करते हैं। हाथ मुझे जोड़ते है और मन से किसी और को कोसते हैं। पर में तो कर्म के सिद्धांतो की मर्यादा से बंधा हूँ.... इसलिये जैसे ही किसी ने हाथ पैर जोड़ने का कर्म किया, बस फिर में उसके मन के भावों के अनुरूप उसे फल देने को मजबूर हूँ।
मित्रों इस कहानी से एक बार फिर ये बात क्लीयर हो गई कि भगवान हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल देते हैं। कर्म तो मात्र फल तक पंहुचने का एक साधन हैं। इसलिये मित्रों इस कर्म के सिद्धांत को अगर आप समझ गए हैं तो आज से ही अपने हर कर्म को अच्छे भावों से जोड़ दीजिये। ऐसा करने से निश्चित हीं आपको कम समय में और कम परिश्रम में ही अच्छे परिणामों की प्राप्ति होने लगेगी।
मित्रों इन बातों को आपको बताने का मेरा एक ही उद्धेश्य यही हैं कि आपको को इस कर्म-फल के सिद्धांत का ज्ञान हो जाए, ताकि आपको अपने जीवन में अपने हर कर्म के श्रेष्ठ से श्रेष्ठ परिणाम मिल सकें।
मित्रों Sixth Sense के सफ़र में हमने मन की अनेक शक्तियों और सिद्धांतो के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। पर मित्रों ये मन फिर भी विषयों में भटक कर इन सिद्धन्तो को भूल जाता हैं। इसलिये मित्रों कल हम इस मन को काबू में रखने के सिद्धांत पर चर्चा करेंगे।
राधे-राधे...
मित्रों पिछले पार्ट में हमने कथा-कहानियों के पीछे छुपे विज्ञान को समझा, कि कैसे इनको एक प्रोग्राम की तरह हमारे अवचेतन मन तक पहुँचा कर हमारे मन के भावों को बदल हमारे ध्यान के साथ जोड़ दिया जाता हैं जिससे हम, हमारे कर्मो के सामान्य से अधिक और श्रेष्ठ परिणामों को पा सके।
मित्रों जैसा की मैंने पहले बताया की हमें कर्मों का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं। बिना भाव के तो साधारण फल ही प्राप्त होते हैं। अब व्रत के सिद्धांत को ही ले लो, अगर हम किसी दिन ऐसे ही भूखे रह जाए तो परिणाम स्वरूप मात्र हमारे पेट की आँतो की सफाई होगी और कुछ नहीं। पर अगर हमने कोई व्रत रखा हैं तो उस सामान्य परिणाम के साथ-साथ हमें वो भी फल मिलेगा जिसका हमने व्रत रखा हैं। मित्रों मैने बार-बार कहा हैं कि हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे एक ही विज्ञान काम कर रहा हैं, और वो हैं हमारे ध्यान की दिशा को बदलना। व्रत के द्वारा भी यही किया जाता हैं। पूरे दिन में जब भी हमे भूख महसूस होती हैं तब इसके चलते हमारा ध्यान एक ही और जाता हैं कि फलां व्रत किया हैं जिससे ये फल मिलेगा।
जैसे किसी स्त्री ने तीज का व्रत रखा हैं तो उसके फल स्वरूप उसके पति की आयु बढ़ेगी इत्यादि-वित्यादि। अगर किसी ने वैभव-लक्ष्मी का व्रत रखा है तो उसे लक्ष्मी का वैभव प्राप्त होगा। इसके बावजूत मित्रो अक्सर हम ये भी सुनते है की व्रत की कथा का माह्त्मं सुनने से ही व्रत फलता हैं। मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मुझे इसका विज्ञान समझ में आया कि व्रत की कथा सुनने से हमारा भाव पुष्ट हो जाता हैं, और इन्ही भावों के चलते हमारा ध्यान श्रेष्ठ परिणामों की और हो जाता है, जिससे हम व्रत के श्रेष्ठ परिणाम को पाते हैं।
मित्रों कितने आश्चर्य की बात है कि इन सभी व्रतों में कर्म एक जैसा ही होता है, भूखा रहना... पर "फल" सबके अलग-अलग। जिस भाव से व्रत किया जाता हैं उसी भाव का फल मिलता हैं। पर बिना भाव के सामान्य से अधिक फलों को नही पाया जा सकता। मित्रों अगर ऐसा होता तो आज भिखारी सबसे आमिर, सुखी और वैभवशाली होते, क्योंकि उनके तो ऐसे व्रत कई-कई दिनों तक के हो जाते हैं। पर मित्रों उनके साथ ऐसा कुछ नही होता क्योंकि वे ज्ञान के अभाव में भाव को नही बना पाते। और भूख के कारण अक्सर मौत के शिकार हो जाते हैं।
मित्रों इतने उदाहरणों को प्रस्तुत करने के बाद मैं समझता हूँ की आपके मन में अब ये बात क्लीयर हो गई होगी कि, हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं। और हर कर्म के साथ अच्छे भावों को जोड़कर उत्तम फलों को प्राप्त किया जा सकता हैं। फिर भी चलिये एक छोटी सी कथा द्वारा कर्म के साथ अच्छे-बुरे भावों के परिणाम बताता हैं।
मित्रों एक समय की बात है एक सन्यासी अपनी कुटिया के बाहर बैठकर रोज परमात्मा का ध्यान लगाता था। उसकी कुटिया के सामने एक वेश्या का भी घर था। सन्यासी रोज ध्यान धरते-धरते वेश्या के कर्मो को देखकर दिनभर, मन ही मन यह विचार करता रहता की देखो ये कितना नीच कर्म कर रही है और ईश्वर द्वारा मिली इस देह को पाप कर्म में लिप्त कर अपना नरक बना रही हैं।
वही दूसरी और वो वेश्या सन्यासी को रोज भगवान् का ध्यान लगाते देख यह चिंतन करती थी की देखो साधू महात्मा कितने पुण्यशाली हैं जो हमेशा भगवान् के ध्यान में लीन रहते हैं।
मित्रों पूरे जीवन काल तक दोनों का चिंतन एक दूसरे के प्रति ऐसा ही बना रहा। मरणोपरांत जब दोनों ऊपर जाते है तब भगवान् अपने दूतों से वेश्या को "स्वर्ग" भेजने का और साधू को "नरक" में डालने का फैसला सुनाते हैं। भगवान् का फैसला सुनकर साधू, भगवान् से कहता है कि प्रभु इस वेश्या ने जीवन भर अपनी देह को पाप कर्मो में लगाए रखा और मैंने जीवन भर इस देह को आपके ध्यान में लगाके रखा, फिर इसे स्वर्ग और मुझे नरक क्यों?
भगवान् ने कहा साधू महात्मा आपका कथन बिल्कुल सत्य है। आपने जीवन भर अपनी देह को जप या ध्यान में लगाये रखा। परन्तु तन से भले ही आप मेरा नाम जप रहे थे, पर आपका मन का "ध्यान" तो हमेशा वेश्या के पाप कर्मो के चिंतन में लगा रहता था। वहीँ दूसरी और ये वेश्या रोज आपको देखकर एक हीं ध्यान करती, कि साधू महात्मा कितने पुण्यशाली है जो हमेशा भगवान् का ध्यान लगाते है। और आप हीं को देखने के साथ-साथ इसका ध्यान मुझसे जुड़ा रहता।
महात्मा जी कर्म भले ही अच्छे हो, पर जब तक आपका ध्यान संसार की बुराइयों में है, आपके मन के भाव बुरे है, तब तक मुक्ति संभव नही। महात्मा जी मंदिर में आकर लोग मुझे कितने हीं हाथ जोड़ले, दंडवत करले, प्रसाद चढ़ाले या और भी मुझे रिझाने के कोई कर्म करले, पर में वो कुछ नही देखता, में तो इतना कुछ करने के बाद भी उसके मन के भावों को हीं देखता हूँ कि संसार में रहते हुए उसका ध्यान किन बातों पर हैं, और उसके उन्ही भावों के अनुसार उसके कर्मफल को निर्धारित कर देता हूँ।
महात्मा जी लोग भले हीं रोज मंदिर जाते हो, परन्तु ये जरुरी नही की वे सुखी हो पायेंगे। क्योकि इस कलयुग में अधिकतर लोग अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु मन में बुरे भाव रखकर मुझे रिझाने का प्रयास करते हैं। हाथ मुझे जोड़ते है और मन से किसी और को कोसते हैं। पर में तो कर्म के सिद्धांतो की मर्यादा से बंधा हूँ.... इसलिये जैसे ही किसी ने हाथ पैर जोड़ने का कर्म किया, बस फिर में उसके मन के भावों के अनुरूप उसे फल देने को मजबूर हूँ।
मित्रों इस कहानी से एक बार फिर ये बात क्लीयर हो गई कि भगवान हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल देते हैं। कर्म तो मात्र फल तक पंहुचने का एक साधन हैं। इसलिये मित्रों इस कर्म के सिद्धांत को अगर आप समझ गए हैं तो आज से ही अपने हर कर्म को अच्छे भावों से जोड़ दीजिये। ऐसा करने से निश्चित हीं आपको कम समय में और कम परिश्रम में ही अच्छे परिणामों की प्राप्ति होने लगेगी।
मित्रों इन बातों को आपको बताने का मेरा एक ही उद्धेश्य यही हैं कि आपको को इस कर्म-फल के सिद्धांत का ज्ञान हो जाए, ताकि आपको अपने जीवन में अपने हर कर्म के श्रेष्ठ से श्रेष्ठ परिणाम मिल सकें।
मित्रों Sixth Sense के सफ़र में हमने मन की अनेक शक्तियों और सिद्धांतो के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। पर मित्रों ये मन फिर भी विषयों में भटक कर इन सिद्धन्तो को भूल जाता हैं। इसलिये मित्रों कल हम इस मन को काबू में रखने के सिद्धांत पर चर्चा करेंगे।
राधे-राधे...