मित्रों "जीवन-दर्शन" के इस सफर में आपका हार्दिक स्वागत हैं। अपने जीवन के आज तक के सफ़र में मैंने जो दर्शन किया हैं, जो समझा हैं, जिस सत्य को पहचाना हैं, वो आप भी जाने ऐसा एक प्रयास है मेरा। मित्रों पेशे से मैं एक व्यापारी हूँ, पर बचपन से ही खोजी प्रवर्ति का रहा हूँ। ईश्वर के नियमों और सिद्धांतो को समझने के लिये मैंने धार्मिक ग्रंथो के साथ-साथ भूत-भविष्य को जानने वाले हस्त-रेखा, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि और इनसे सम्बंधित विषयों का भी अध्ययन किया हैं। पर फिर भी मुझे इनसे कोई संतुष्टि नही मिली। ज्योतिष विज्ञान के द्वारा सब-कुछ जानने के बाद भी एक अधूरा सा पन महसूस होता था। ऐसे में सत्य की खोज करते-करते ध्यान और दर्शन-शास्त्र से जुड़ गया। यहाँ मैंने ईश्वर के अनेक नियमों को जाना, पर फिर भी जब तक उसको ना पा लूँ तब तक अधूरा ही हूँ।
मित्रों सत्य की खोज और "जीवन" के वास्तविक स्वरुप को समझने की कला ही "दर्शन" हैं। जो व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करने तथा नई-नई बातों और रहस्यों को जानने में रूचि रखता हैं, और फिर भी उसकी जिज्ञासा शांत नही होती, वो दार्शनिक कहलाता हैं। दर्शन का आरम्भ जिज्ञासा से होता हैं। बिना ईच्छा या जिज्ञासा के ज्ञान संभव नहीं। जीवन क्या हैं, आत्मा क्या हैं, परमात्मा क्या हैं, जीवन का आदि अंत सत्य क्या हैं? यही दर्शन का विषय हैं।
राधे-राधे...

21 नवंबर 2017

Sixth Sense-5

Sixth Sense-5

मित्रों पिछले भागों में हमने छटी इंद्री और उसकी कार्यप्रणाली के बारे में जाना। इसके साथ-साथ हमने ये भी समझा की कैसे हमारी मानसिक कार्यप्रणाली कंप्यूटर से मिलती-जुलती हैं।

मित्रों जब कंप्यूटर की रनिंग-मैमोरी और इन्टरनल-मैमोरी पर दबाव बढ़ता हैं तब आप कितनी भी कोशिश कर ले, किबोर्ड और माउस पर कितने भी हाथ-पैर मार लें काम नही हो पायेगा। बस ठीक इसी तरह हमारे जाग्रत-मन और अवचेतन-मन पर जब विचारों का दबाव बढ़ जाता है तब व्यक्ति शरीर से चाहे जितनी मेहनत कर ले उसे कर्मो का फल नही मिल पाता।

बाबा की भाषा में कहे तो "कृपा रुक जाती हैं।

दोस्तों कंप्यूटर के बारे में तो आपको ज्ञान हैं कि जब मैमोरी पर प्रेशर बढ़ता हैं तब कंप्यूटर हैंग हो जाता हैं और कार्यप्रणाली रुक जाती हैं। पर शरीर की कार्यप्रणाली के बारे में आपको ज्ञान नही, इसलिये आप समझ हीं नही पाते कि किन कारणों की वजह से हमारा आगे बढना या तरक्की रुकी हुई है।

आइये मित्रों अब ये समझने का प्रयास करते हैं कि हमारे मन की यह कार्यप्रणाली कैसे हमारे कर्म-क्षेत्र को प्रभावित करती हैं, और ऐसे कौनसे विचार होते है जो हमारी ही तरक्की में बाधक बन जाते हैं, जिनका ज्ञान हमें भी नही होता।

दोस्तों ये बात में पहले बता चूका हूँ की "जाग्रत-मन" मस्तिष्क का 5% भाग ही होता है। ठीक वैसे ही कंप्यूटर की रनिंग-मौमोरी की क्षमता भी कम मात्रा में ही होती हैं। इसलिये हम अधिक application पर एक साथ काम नही कर सकते। इसलिये जब हम कंप्यूटर पर काम करते हैं तब रनिंग-मैमोरी पर कार्य पूर्ण कर उसे इन्टरनल मौमोरी में सेव कर फाईल बंद कर देते हैं।

अब मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझते हैं।

दैनिक दिनचर्या में हम बहुत से कार्यो का संचालन हमारे जाग्रत-मन द्वारा करते हैं। और जैसे-जैसे कार्य पूर्ण होते जाते हैं वैसे-वैसे वो फाईले स्वत: बंद होकर अपने-आप अवचेतन मस्तिष्क में फीड होती जाती हैं।

पर ऐसे में जो कुछ कार्य अधूरे छूट जाते हैं, वे कुछ समय तक जाग्रत-मन पर रहते हैं, और समय रहते पूर्ण हो गए तो ठीक है फाईल बंद होकर अवचेतन-मन में फीड हो जाएगी। पर अगर वे कार्य पूर्ण नही हुए तो वो फाईले बिना बंद हुए अवचेतन-मन के ऊपरी तल पर कार्य के पूर्ण होने के "इन्तजार" में पड़ी रहती हैं।

दोस्तों ऐसी एक फाईल नही बल्कि जीवन में ऐसे कई काम होते है जो हमारे सामने आते हैं और हम उस काम को करने का सोच लेते है, पर कर नही पाते, जिससे हमारा अवचेतन-मन पर ऐसी खुली फाइलों में अटक जाता हैं, जिसका ज्ञान हमारे जाग्रत मन को नही रहता।

दोस्तों कंप्यूटर जब हैंग हो जाता हैं तो काम होना मुश्किल हो जाता हैं हालांकि इसमें मशीनरी का कोई दोष नही होता। बस इसी तरह जब हमारा अवचेतन मन इन खुली फाइलों में अटक जाता हैं तब हमारे तन का कोई दोष नही होता, तन तो खूब हाथ-पैर चलाता है। पर मन के हैंग हो जाने के कारण काम नही हो पाता।

"इसे कहते है कृपा रुक गई।"
अरे भाई ये कृपा-वृपा कुछ नही रूकती बल्कि लोजिक ये हैं कि ये मन अटक जाता हैं। तन बेचारा कर्म कर रहा हैं पर मन कहीं और अटका है तो कैसे काम बनेगा। तो जब तक वो कार्य पूरा नही होता तब तक अवचेतन-मन उस पर अटका रहता हैं। मन की महिमा बड़ी निराली हैं मेरे भाई। ये मन सब कुछ हैं, और इसमें बहुत कुछ छिपा हैं। पर इसे हम अगले पार्ट में समझेंगे।

तो फिर जब हम बाबा के पास जाते है तब वे अपनी छटी-इंद्री से हमारे अवचेतन-मन के ऊपरी तल की वे फ़ाइले हमारे सामने ला देते हैं जो हमने खुली छोड़ दी थी। हालाँकि बाबा तो एक या दो बाते बता कर वो कर्म पूर्ण करवा कर हमारे मन को वहां से मुक्त करा देते हैं, और कुछ मैमोरी को ही फ्री कर पाते हैं, पर फिर भी हमारे कार्य बनने लगते हैं।
पर आप सोचो की जब आपको स्वयं को इसका ज्ञान हो जाएगा तब आप खुद अपने अवचेतन-मन की इन खुली फाईलों को पढ़कर आप स्वयं उन्हें पूरा कर दोगे तो इससे भी कही अधिक अपनी मैमोरी को मुक्त कर दोगे।

दोस्तों कम्प्यूटर का सिस्टम और मशीनरी जब दोनों दूरुस्त होते है तब काम अच्छा होता है और अच्छे परिणाम मिलते हैं। पर दोनों में से एक भी प्रभावित हो तो काम बंद हो जाते हैं।

शास्त्रों में लिखा है जब दो चीजे मिलती है तो उसे योग कहते हैं। एक अकेला कुछ नही कर सकता। पर जब दो लोग मिलते हैं तो एक और एक ग्यारह हो जाते हैं जिससे कार्य क्षमता का विकास होता हैं और श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं।

मित्रों जब मन और तन दोनों मिलकर काम करते है तब एक शक्तिशाली योग बनता हैं। मन और तन का योग एक शक्तिशाली मंत्र बन जाता हैं और उसी शक्ति से हमारी तरक्की होती हैं यानी "कृपा" आने लगती हैं।

अब आप ये बात तो समझ गए होंगे की "कृपा" नही रूकती बल्कि मन अटक जाता हैं। इस विषय पर अगले पार्ट में और चर्चा करेंगे।
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मित्रों आज का विषय बहुत जटिल था और भरपूर प्रयास के बाद भी में आपको लक्ष्य तक नहीं पहुँचा पाया जिसका मुझे खेद हैं। पर जैसा मैंने कल कहा कि ईश्वरीय रहस्यों को जानना हर किसी के बस की बात नही। और इसके अंतिम पार्ट तक वे ही पहुँच पायेंगे जिनकी कृपा कही रुकी ना हो।

राधे-राधे...