Sixth Sense-8
मित्रों अब तक हम छटी इंद्री और उससे सम्बंधित कुछ रहस्यों को जान चुके हैं। पर मित्रों विषय अभी समाप्त नही हो रहा हैं, और ना हीं में अपने ट्रेक से भटक रहा हूँ। बस जो बातें जरुरी है उन्हें हीं आप तक पहुंचा रहा हूँ।
मित्रों मै बार-बार बता चूका हूँ कि ईश्वरिय सिद्धांतो को जान लेना कोई छोटी बात नहीं। अगर ऐसा होता तो श्री कृष्ण को कहाँ जरुरत थी अर्जुन को गीता के सात-सौं श्लोकों को सुनाने की, वे तो भगवान् थे ना, एक मंत्र को कान में फूक कर भी सब ज्ञान दे सकते थे।
मित्रों गीता-सार तो आपने सुना होगा, कि तुम क्या लाये हो ? क्या ले जाओगे ? सब व्यर्थ हैं, इत्यादि-इत्यादि। क्या किसी को... गीता के सार को सुनकर किसी को ज्ञान हो सकता हैं ?
नहीं...
अगर ऐसा होता तो आज सब ज्ञानी होते। ये गीता-सार तो सम्पूर्ण गीता का सूक्ष्म बीज स्वरुप है। और ये उन लोगों के लिये हैं जिन्होंने गीता को पूर्ण रूप से पढ़ लिया हैं और जब वे इस गीता-सार को देखते है या पढ़ते हैं तो उन्हें सम्पूर्ण गीता का भान हो जाता हैं। अरे भाई वृक्ष का ज्ञान होगा तो ही बीज को समझ पाओगे ना।
बस ठीक ऐसे ही जब आप "छटी-इंद्री" के सम्पूर्ण रहस्य को समझ लेंगे तो आपको रोज-रोज इतना पढने की जरुरत नही होगी बल्कि एक छोटी सी बात याद रखने की होगी कि...
"मन ही सर्वशक्तिशाली हैं, और ये मन ही परमात्मा हैं।"
पर मित्रों अभी आपको ये बात अजीब सी लग रही होगी कि "मन" कैसे सर्वशक्तिशाली हैं। और अगर शक्तिशाली है तो जब हम सब लोग जब अपने सभी काम मन से करते हैं, फिर भी हमें हमारे कर्मो के मनचाहे परिणाम क्यों नही मिलते ???
आइये इस रहस्य को समझते हैं।
तो जैसा मैंने पिछले पार्ट में बताया की मन जब कहीं अटक जाता है तो कृपा रूक जाती हैं, यानी मैमोरी अटक जाती हैं। पर जब मन उस बात से मुक्त हो जाता है तो हमारी मैमोरी फ्री हो जाती हैं और हमारा पूरा ध्यान हमारे कर्म-क्षेत्र पर लग जाता है। और सफलता हमारे कदम चूमती हैं।
पर सवाल ये उठता हैं कि हमारी मैमोरी यानी मन में ऐसा क्या हैं जो एकाग्र होकर इतना शक्तिशाली हो जाता हैं ? आइये मित्रों एक उदाहरण से समझाता हूँ।
दोस्तों Convex लेंस तो आपने देखा होगा, यानी उत्तल लेंस। जब आप Convex लेंस को धूप में ले जाकर उसके निचे एक कागज का टुकड़ा रखते है तो वो कागज जल जाता हैं। मित्रो ऐसा क्यों होता है?
जबकि धूप में कितनी भी देर उस कागज को रख दो तो नहीं जलता हैं। होता ये है मित्रों कि Convex लेंस सूर्य की किरणों को समेट कर एक जगह पर केन्द्रित कर देता हैं, और सूर्य की किरणों के एक जगह केन्द्रित होने से कागज जल जाता हैं। यानी सूर्य की सारी शक्ति एक जगह पर केन्द्रित हो जाती हैं।
मित्रों त्राटक के बारे में आपने कभी सुना होगा आपने। इस साधना में एक बिंदु पर ध्यान केन्द्रित कर आँखों की सारी शक्ति को एक जगह केन्द्रित करने का प्रयास किया जाता हैं। ऐसा करने से मन के सारे विचार एक बिन्दु पर आ जाते हैं। हालाँकि इसके बारे में अभी कुछ अधिक नहीं बताऊंगा क्योंकि विषय बहुत लम्बा हो जायेगा। बस इस साधना के द्वारा जादूगर लोग अपनी मन की शक्ति को केन्द्रित कर लोगों को सम्मोहित कर देते हैं। और फिर हम वो ही देखते हैं जो वो हमें दिखाना चाहते हैं।
बस मित्रों यही सिद्धांत हमारे मन पर भी लागू होता हैं। जब मन एकाग्र होकर किसी एक काम पर केन्द्रित होता है, तब हमारे अन्दर भी ऐसी ही "शक्ति" पैदा होती है जो हमें शीघ्र ही कर्म के फल तक पहुँचा कर मनचाहे परिणाम देती हैं। इसीलिये कहते हैं कि...
"किसी चीज को तुम "सिद्दत" से चाहो
तो सारी कायनात उसे तुम्हे मिलाने में लग जाती हैं।"
मित्रों भटकते मन को कैसे रोक जाए इसकी कला सिखने से पहले इन सिद्धांतो को भी समझना जरुरी था। क्योंकि अगर फल का ज्ञान पहले हो जाए तो बीज पर मेहनत करने का मजा और ही आता हैं।
मित्रों ईश्वरीय रहस्यों को जानने का यह सफ़र अभी चलता रहेगा। और आप अपने मन में ऐसी ही सिद्दत रखना, सफर कितना ही लम्बा क्यों न हो, पर अपने लक्ष्य पर अडिग रहना।
राधे-राधे...
मित्रों अब तक हम छटी इंद्री और उससे सम्बंधित कुछ रहस्यों को जान चुके हैं। पर मित्रों विषय अभी समाप्त नही हो रहा हैं, और ना हीं में अपने ट्रेक से भटक रहा हूँ। बस जो बातें जरुरी है उन्हें हीं आप तक पहुंचा रहा हूँ।
मित्रों मै बार-बार बता चूका हूँ कि ईश्वरिय सिद्धांतो को जान लेना कोई छोटी बात नहीं। अगर ऐसा होता तो श्री कृष्ण को कहाँ जरुरत थी अर्जुन को गीता के सात-सौं श्लोकों को सुनाने की, वे तो भगवान् थे ना, एक मंत्र को कान में फूक कर भी सब ज्ञान दे सकते थे।
मित्रों गीता-सार तो आपने सुना होगा, कि तुम क्या लाये हो ? क्या ले जाओगे ? सब व्यर्थ हैं, इत्यादि-इत्यादि। क्या किसी को... गीता के सार को सुनकर किसी को ज्ञान हो सकता हैं ?
नहीं...
अगर ऐसा होता तो आज सब ज्ञानी होते। ये गीता-सार तो सम्पूर्ण गीता का सूक्ष्म बीज स्वरुप है। और ये उन लोगों के लिये हैं जिन्होंने गीता को पूर्ण रूप से पढ़ लिया हैं और जब वे इस गीता-सार को देखते है या पढ़ते हैं तो उन्हें सम्पूर्ण गीता का भान हो जाता हैं। अरे भाई वृक्ष का ज्ञान होगा तो ही बीज को समझ पाओगे ना।
बस ठीक ऐसे ही जब आप "छटी-इंद्री" के सम्पूर्ण रहस्य को समझ लेंगे तो आपको रोज-रोज इतना पढने की जरुरत नही होगी बल्कि एक छोटी सी बात याद रखने की होगी कि...
"मन ही सर्वशक्तिशाली हैं, और ये मन ही परमात्मा हैं।"
पर मित्रों अभी आपको ये बात अजीब सी लग रही होगी कि "मन" कैसे सर्वशक्तिशाली हैं। और अगर शक्तिशाली है तो जब हम सब लोग जब अपने सभी काम मन से करते हैं, फिर भी हमें हमारे कर्मो के मनचाहे परिणाम क्यों नही मिलते ???
आइये इस रहस्य को समझते हैं।
तो जैसा मैंने पिछले पार्ट में बताया की मन जब कहीं अटक जाता है तो कृपा रूक जाती हैं, यानी मैमोरी अटक जाती हैं। पर जब मन उस बात से मुक्त हो जाता है तो हमारी मैमोरी फ्री हो जाती हैं और हमारा पूरा ध्यान हमारे कर्म-क्षेत्र पर लग जाता है। और सफलता हमारे कदम चूमती हैं।
पर सवाल ये उठता हैं कि हमारी मैमोरी यानी मन में ऐसा क्या हैं जो एकाग्र होकर इतना शक्तिशाली हो जाता हैं ? आइये मित्रों एक उदाहरण से समझाता हूँ।
दोस्तों Convex लेंस तो आपने देखा होगा, यानी उत्तल लेंस। जब आप Convex लेंस को धूप में ले जाकर उसके निचे एक कागज का टुकड़ा रखते है तो वो कागज जल जाता हैं। मित्रो ऐसा क्यों होता है?
जबकि धूप में कितनी भी देर उस कागज को रख दो तो नहीं जलता हैं। होता ये है मित्रों कि Convex लेंस सूर्य की किरणों को समेट कर एक जगह पर केन्द्रित कर देता हैं, और सूर्य की किरणों के एक जगह केन्द्रित होने से कागज जल जाता हैं। यानी सूर्य की सारी शक्ति एक जगह पर केन्द्रित हो जाती हैं।
मित्रों त्राटक के बारे में आपने कभी सुना होगा आपने। इस साधना में एक बिंदु पर ध्यान केन्द्रित कर आँखों की सारी शक्ति को एक जगह केन्द्रित करने का प्रयास किया जाता हैं। ऐसा करने से मन के सारे विचार एक बिन्दु पर आ जाते हैं। हालाँकि इसके बारे में अभी कुछ अधिक नहीं बताऊंगा क्योंकि विषय बहुत लम्बा हो जायेगा। बस इस साधना के द्वारा जादूगर लोग अपनी मन की शक्ति को केन्द्रित कर लोगों को सम्मोहित कर देते हैं। और फिर हम वो ही देखते हैं जो वो हमें दिखाना चाहते हैं।
बस मित्रों यही सिद्धांत हमारे मन पर भी लागू होता हैं। जब मन एकाग्र होकर किसी एक काम पर केन्द्रित होता है, तब हमारे अन्दर भी ऐसी ही "शक्ति" पैदा होती है जो हमें शीघ्र ही कर्म के फल तक पहुँचा कर मनचाहे परिणाम देती हैं। इसीलिये कहते हैं कि...
"किसी चीज को तुम "सिद्दत" से चाहो
तो सारी कायनात उसे तुम्हे मिलाने में लग जाती हैं।"
मित्रों भटकते मन को कैसे रोक जाए इसकी कला सिखने से पहले इन सिद्धांतो को भी समझना जरुरी था। क्योंकि अगर फल का ज्ञान पहले हो जाए तो बीज पर मेहनत करने का मजा और ही आता हैं।
मित्रों ईश्वरीय रहस्यों को जानने का यह सफ़र अभी चलता रहेगा। और आप अपने मन में ऐसी ही सिद्दत रखना, सफर कितना ही लम्बा क्यों न हो, पर अपने लक्ष्य पर अडिग रहना।
राधे-राधे...