Sixth Sense-11
मित्रों Six Sense के पिछले पार्ट में हमने हमारे नाम, श्लोगन इत्यादि बातों पर चर्चा की कि कैसे इन शब्दों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता हैं। मित्रों जिन शब्दों या वाक्यों को हम बार-बार दोहराते हैं उन शब्दों और वाक्यों का अर्थ जीवन में इतना आहिस्ते से उतर आता हैं जिसका हमें पता भी नही चलता। मित्रों यह बात इतनी गहरी और ज्ञान इतना सूक्ष्म हैं कि इस आम तौर पर इस पहलू पर किसी का ध्यान जा भी नही पाता। मुझे पता हैं अभी भी ये बात आपको हजम नही हो रही कि शब्दों और नाम का प्रभाव भी हमारे जीवन में सुख-दुःख लाता हैं। इसलिये मित्रों इस आर्टिकल के जरिये मेरा पूरा प्रयास हैं कि मैं सरल शब्दों में इसके विज्ञान को आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ।
मित्रों कभी-कभी सुनने में आता हैं कि फलां व्यक्ति के नाम बदलने से सितारे बुलन्द हो गये। वैसे नाम बदलने के लिये कुछ विधियाँ काम में भी ली जाती हैं, और ऐसा करने किसी को तो अच्छी सफलता मिल जाती हैं तो कोई सफलता से वंचित भी रह जाता हैं। ऐसा इसलिये होता हैं कि हमे इस "नाम" की शक्ति के पीछे का विज्ञान मालूम नहीं। मित्रों नाम परिवर्तन की विधी चाहे कोई भी हो, पर इसके पीछे विज्ञान एक ही काम करता हैं। और उस विज्ञान को समझ लिया जाये तो निश्चित ही लोगों के जीवन को ऊंचाइयों तक पहुँचाया जा सकता हैं।
मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मैंने यह पाया कि संसार में आज हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा हैं वो हमारे मन के "ध्यान" की वजह से हो रहा हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसको क्रमश: आत्मा और परमात्मा से ऊर्जा प्राप्त होती हैं, और इस मन का निरंतर ध्यान जिस भाव के साथ जिस विषय पर होता हैं, वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उधर होने लगता हैं।
मित्रों अभी कुछ समय पहले मैंने अपने एक लेख में लिखा कि "भगवान् मूर्ती में नही बल्कि आपके मन में होते हैं, और आपके ही मन की ऊर्जा पाकर एक पत्थर भी भगवान् बन जाता हैं।
मित्रों जैसे भगवान् "राम" की मूर्ती को देखते समय आपके मन में या भाव होता हैं कि ये भगवान् हैं, जो हमारा कल्याण करते हैं। और ये ही नही मित्रों भगवान् "राम" का नाम लेते ही उनसे जुड़े सभी तथ्य हमारे अवचेतन मन से निकलकर चेतन मन पर उजागर हो जाते हैं। मित्रों यह प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से स्वत: ही संपन्न होती हैं और इसके चलते आपके मन के इन्ही भावों के साथ आपका "ध्यान" उस मूर्ती पर बनता हैं। और आपका ध्यान जैसे भाव के साथ होता है वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उस मूर्ती की और हो जाता हैं जिसके चलते उस मूर्ती के चारों और वैसा ही "चुम्बकीय-क्षेत्र" यानी आभामंडल तैयार होता जाता हैं। और जितने अधिक लोगों का ध्यान उस भाव के साथ उस मूर्ती पर होता हैं उसका आभामंडल उतना ही कल्याणकारी और शक्तिशाली होता जाता हैं, और ऐसे में जब हम उस मूर्ती के चुम्बकीय-क्षेत्र में जाते हैं तब हमारा आभामंडल उस मूर्ती के शक्तिशाली और सकरात्मक आभामंडल के सम्पर्क आकर उसकी विशालता के कारण शुद्ध होने लगता हैं। और इसी आभामंडल के शुद्धिकरण का सीधा प्रभाव हमारे मस्तिष्क से होकर स्वभाव पर पड़ता हैं। और अपने बदले स्वभाव और बदली विचारधारा के कारण हमारे ध्यान की दिशा ऐसे कर्मो की और हो जाती हैं जिनसे जीवन में सुख आता हैं।
मित्रों हमारे मन से ये जो ऊर्जा (Magnetic Waves) निकलती हैं उसे हम खुली आँखों से नही देख सकते। पर मन से ऊर्जा निकलती हैं ये ही सत्य हैं। आपने "नजर" लगने के बारे में तो सुना ही होगा। हालाँकि नजर तो सबकी एक जैसी ही होती हैं, दिखता तो सबको एक जैसा ही है। नजर ना तो अच्छी होती हैं और ना ही बुरी होती हैं। बस हर नजर के पीछे अच्छा-बुरा भाव जुड़ा होता हैं। किसी ने आपको बुरी नजर से देखा तो उसके मन से निकली नकारात्मक ऊर्जा आपके आभामंडल को खंडित करती हैं, और अच्छे भाव से आपको देखा तो आपका आभामंडल सकारात्मक ऊर्जा से पोषित होता हैं।
बस मित्रों यही विज्ञान हमारे "नाम" पर भी लागू होता हैं। जैसे एक पत्थर को जिस नाम और जिस भाव के साथ देखा जाता हैं उसमे वैसी ही शक्ति, एक "चुम्बकीय-क्षेत्र" के रूप में पैदा हो जाती हैं। वैसे ही हमें जिस नाम के भाव के साथ पुकारा जाता हैं, हम उस नाम से सम्बंधित गुणों-अवगुणों से जुड़ जाते हैं।
अब मित्रों इस सिद्धांत के चलते अगर हमारा नाम "राम" हैं तो क्या हम भगवान बन गये ???
नहीं मित्रों... ऐसा नही हैं।
होता यूं हैं कि मूर्ती देखते समय लोगों के मन में उस मूर्ती के भगवान् होने का भाव बनता हैं। पर हम तो इंसान रूप में हैं इस कारण हमारे प्रति लोगों का भाव तो इंसान का ही बनेगा, भगवान् का नही। परन्तु जब-जब हमारा नाम लिया जायेगा तब-तब "राम" नाम लेते ही भगवान् राम की छवि लोगों के अवचेतन मन में स्वत: ही फ्लेश होगी, जिसके चलते लोगों के मन के ध्यान के साथ ये भी भाव जुड़ जायेगा। और ऐसे में लोगों के द्वारा उनके मन से निकली वैसी ही ऊर्जा से हमारा आभामंडल पोषित होता रहेगा।
पर यहाँ एक संदेह रह जाता हैं, वो ये की हमारे "राम" नाम के कारण हम राम के चरित्र से तो जुड़ जाते हैं, पर किसी भी कारणवश बुरे कर्मो, अहंकार या किसी द्वेष के चलते लोगों का भाव हमारे प्रति बुरा हो जाता हैं तो ऐसे में उनका ध्यान हमारे लिए नकारत्मक ऊर्जा के साथ होगा, जिसके चलते हमारा आभामंडल खंडित होकर हमें हानि पहुंचायेगा। मित्रों इसलिये कहते हैं कि अपनी ईज्जत को बना कर रखो, लोगों की नजरों में बुरे मत बनो।
मित्रों ये हैं नाम और ध्यान के पीछे छुपा विज्ञान। अब आप चाहे तो अपना ना बदलकर जीवन की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। और इस विज्ञान को अगर ध्यान से समझ गए हैं तो बिना नाम बदले भी जीवन की ऊँचाइयों को पा सकते हैं।
पर कैसे ??? आसान हैं दोस्तों...
बस मित्रों, आपको लोगों के समक्ष स्वयं को एक बेहतर इंसान के रूप में प्रस्तुत करना हैं, किसी के भी मन में आपके प्रति किसी भी प्रकार का बुरा भाव ना रहे। लोगों का ध्यान आप पर जितना अच्छा होगा उतना ही उनकी ऊर्जा से आपका आभामंडल पोषित होगा।
इसे कहते हैं लोगों की ऊर्जा को चुराना। हा.. हा.. हा....
मित्रों बड़े-बड़े फिलोसॉफर अपने इसी ज्ञान के सहारे लोगों की एनर्जी चुरा कर अपने अलग-अलग पंथ बनाकर अमर हो गये। और आज भी इस फिलोसोफी को समझने वाले बड़े-बड़े गुरु लोग, लोगों को सम्मोहित कर अपने समागम द्वारा हजारों लोगों के ध्यान को अपनी और आकर्षित कर अपना नाम कमा रहे हैं।
मित्रों हालाँकि इस विषय पर कहने को तो बहुत कुछ हैं, पर हमे आगे का सफ़र भी तय करना हैं, इसलिये इसकी अभी इसकी सूक्ष्म व्याख्या ही काफी हैं। अगले पार्ट में हम मन रुपी छटी इंद्री के बारे में कुछ और चर्चा करेंगे।
राधे-राधे...
मित्रों Six Sense के पिछले पार्ट में हमने हमारे नाम, श्लोगन इत्यादि बातों पर चर्चा की कि कैसे इन शब्दों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता हैं। मित्रों जिन शब्दों या वाक्यों को हम बार-बार दोहराते हैं उन शब्दों और वाक्यों का अर्थ जीवन में इतना आहिस्ते से उतर आता हैं जिसका हमें पता भी नही चलता। मित्रों यह बात इतनी गहरी और ज्ञान इतना सूक्ष्म हैं कि इस आम तौर पर इस पहलू पर किसी का ध्यान जा भी नही पाता। मुझे पता हैं अभी भी ये बात आपको हजम नही हो रही कि शब्दों और नाम का प्रभाव भी हमारे जीवन में सुख-दुःख लाता हैं। इसलिये मित्रों इस आर्टिकल के जरिये मेरा पूरा प्रयास हैं कि मैं सरल शब्दों में इसके विज्ञान को आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ।
मित्रों कभी-कभी सुनने में आता हैं कि फलां व्यक्ति के नाम बदलने से सितारे बुलन्द हो गये। वैसे नाम बदलने के लिये कुछ विधियाँ काम में भी ली जाती हैं, और ऐसा करने किसी को तो अच्छी सफलता मिल जाती हैं तो कोई सफलता से वंचित भी रह जाता हैं। ऐसा इसलिये होता हैं कि हमे इस "नाम" की शक्ति के पीछे का विज्ञान मालूम नहीं। मित्रों नाम परिवर्तन की विधी चाहे कोई भी हो, पर इसके पीछे विज्ञान एक ही काम करता हैं। और उस विज्ञान को समझ लिया जाये तो निश्चित ही लोगों के जीवन को ऊंचाइयों तक पहुँचाया जा सकता हैं।
मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मैंने यह पाया कि संसार में आज हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा हैं वो हमारे मन के "ध्यान" की वजह से हो रहा हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसको क्रमश: आत्मा और परमात्मा से ऊर्जा प्राप्त होती हैं, और इस मन का निरंतर ध्यान जिस भाव के साथ जिस विषय पर होता हैं, वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उधर होने लगता हैं।
मित्रों अभी कुछ समय पहले मैंने अपने एक लेख में लिखा कि "भगवान् मूर्ती में नही बल्कि आपके मन में होते हैं, और आपके ही मन की ऊर्जा पाकर एक पत्थर भी भगवान् बन जाता हैं।
मित्रों जैसे भगवान् "राम" की मूर्ती को देखते समय आपके मन में या भाव होता हैं कि ये भगवान् हैं, जो हमारा कल्याण करते हैं। और ये ही नही मित्रों भगवान् "राम" का नाम लेते ही उनसे जुड़े सभी तथ्य हमारे अवचेतन मन से निकलकर चेतन मन पर उजागर हो जाते हैं। मित्रों यह प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से स्वत: ही संपन्न होती हैं और इसके चलते आपके मन के इन्ही भावों के साथ आपका "ध्यान" उस मूर्ती पर बनता हैं। और आपका ध्यान जैसे भाव के साथ होता है वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उस मूर्ती की और हो जाता हैं जिसके चलते उस मूर्ती के चारों और वैसा ही "चुम्बकीय-क्षेत्र" यानी आभामंडल तैयार होता जाता हैं। और जितने अधिक लोगों का ध्यान उस भाव के साथ उस मूर्ती पर होता हैं उसका आभामंडल उतना ही कल्याणकारी और शक्तिशाली होता जाता हैं, और ऐसे में जब हम उस मूर्ती के चुम्बकीय-क्षेत्र में जाते हैं तब हमारा आभामंडल उस मूर्ती के शक्तिशाली और सकरात्मक आभामंडल के सम्पर्क आकर उसकी विशालता के कारण शुद्ध होने लगता हैं। और इसी आभामंडल के शुद्धिकरण का सीधा प्रभाव हमारे मस्तिष्क से होकर स्वभाव पर पड़ता हैं। और अपने बदले स्वभाव और बदली विचारधारा के कारण हमारे ध्यान की दिशा ऐसे कर्मो की और हो जाती हैं जिनसे जीवन में सुख आता हैं।
मित्रों हमारे मन से ये जो ऊर्जा (Magnetic Waves) निकलती हैं उसे हम खुली आँखों से नही देख सकते। पर मन से ऊर्जा निकलती हैं ये ही सत्य हैं। आपने "नजर" लगने के बारे में तो सुना ही होगा। हालाँकि नजर तो सबकी एक जैसी ही होती हैं, दिखता तो सबको एक जैसा ही है। नजर ना तो अच्छी होती हैं और ना ही बुरी होती हैं। बस हर नजर के पीछे अच्छा-बुरा भाव जुड़ा होता हैं। किसी ने आपको बुरी नजर से देखा तो उसके मन से निकली नकारात्मक ऊर्जा आपके आभामंडल को खंडित करती हैं, और अच्छे भाव से आपको देखा तो आपका आभामंडल सकारात्मक ऊर्जा से पोषित होता हैं।
बस मित्रों यही विज्ञान हमारे "नाम" पर भी लागू होता हैं। जैसे एक पत्थर को जिस नाम और जिस भाव के साथ देखा जाता हैं उसमे वैसी ही शक्ति, एक "चुम्बकीय-क्षेत्र" के रूप में पैदा हो जाती हैं। वैसे ही हमें जिस नाम के भाव के साथ पुकारा जाता हैं, हम उस नाम से सम्बंधित गुणों-अवगुणों से जुड़ जाते हैं।
अब मित्रों इस सिद्धांत के चलते अगर हमारा नाम "राम" हैं तो क्या हम भगवान बन गये ???
नहीं मित्रों... ऐसा नही हैं।
होता यूं हैं कि मूर्ती देखते समय लोगों के मन में उस मूर्ती के भगवान् होने का भाव बनता हैं। पर हम तो इंसान रूप में हैं इस कारण हमारे प्रति लोगों का भाव तो इंसान का ही बनेगा, भगवान् का नही। परन्तु जब-जब हमारा नाम लिया जायेगा तब-तब "राम" नाम लेते ही भगवान् राम की छवि लोगों के अवचेतन मन में स्वत: ही फ्लेश होगी, जिसके चलते लोगों के मन के ध्यान के साथ ये भी भाव जुड़ जायेगा। और ऐसे में लोगों के द्वारा उनके मन से निकली वैसी ही ऊर्जा से हमारा आभामंडल पोषित होता रहेगा।
पर यहाँ एक संदेह रह जाता हैं, वो ये की हमारे "राम" नाम के कारण हम राम के चरित्र से तो जुड़ जाते हैं, पर किसी भी कारणवश बुरे कर्मो, अहंकार या किसी द्वेष के चलते लोगों का भाव हमारे प्रति बुरा हो जाता हैं तो ऐसे में उनका ध्यान हमारे लिए नकारत्मक ऊर्जा के साथ होगा, जिसके चलते हमारा आभामंडल खंडित होकर हमें हानि पहुंचायेगा। मित्रों इसलिये कहते हैं कि अपनी ईज्जत को बना कर रखो, लोगों की नजरों में बुरे मत बनो।
मित्रों ये हैं नाम और ध्यान के पीछे छुपा विज्ञान। अब आप चाहे तो अपना ना बदलकर जीवन की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। और इस विज्ञान को अगर ध्यान से समझ गए हैं तो बिना नाम बदले भी जीवन की ऊँचाइयों को पा सकते हैं।
पर कैसे ??? आसान हैं दोस्तों...
बस मित्रों, आपको लोगों के समक्ष स्वयं को एक बेहतर इंसान के रूप में प्रस्तुत करना हैं, किसी के भी मन में आपके प्रति किसी भी प्रकार का बुरा भाव ना रहे। लोगों का ध्यान आप पर जितना अच्छा होगा उतना ही उनकी ऊर्जा से आपका आभामंडल पोषित होगा।
इसे कहते हैं लोगों की ऊर्जा को चुराना। हा.. हा.. हा....
मित्रों बड़े-बड़े फिलोसॉफर अपने इसी ज्ञान के सहारे लोगों की एनर्जी चुरा कर अपने अलग-अलग पंथ बनाकर अमर हो गये। और आज भी इस फिलोसोफी को समझने वाले बड़े-बड़े गुरु लोग, लोगों को सम्मोहित कर अपने समागम द्वारा हजारों लोगों के ध्यान को अपनी और आकर्षित कर अपना नाम कमा रहे हैं।
मित्रों हालाँकि इस विषय पर कहने को तो बहुत कुछ हैं, पर हमे आगे का सफ़र भी तय करना हैं, इसलिये इसकी अभी इसकी सूक्ष्म व्याख्या ही काफी हैं। अगले पार्ट में हम मन रुपी छटी इंद्री के बारे में कुछ और चर्चा करेंगे।
राधे-राधे...