Sixth Sense-16
मित्रों पिछले कुछ पार्ट में हमें कर्म-फल के सिद्धांत के बारे में समझा की कैसे भावों को बदलकर कर्मों के फलों को बदला जा सकता हैं, और दूसरा ये भी समझा की भाव और कर्म दोनों अच्छे होते हुए भी पाप का फल भोगना पड़ता हैं। मित्रों आगे में आपको पाप और पुन्य के निर्धारण के बारे में बताऊंगा की कोन हैं वो, जो हमारे पाप और पुन्य को डिसाईड करता है। पर उससे पहले आज हम मन पर कैसे कन्ट्रोल रखें, इस पर चर्चा करेंगे।
मित्रों आगे का सफर थोड़ा कठिन हैं, पर मेरा निरंतर यही प्रयास है की में सरल शब्दों में इसे आप तक पहुँचा पाऊँ।
मित्रों मन को एकाग्र(काबू) करने की बहुत सी विधियाँ शास्त्रों में बताई गई हैं। व्रत, नियम, प्राणायाम, योग, कुण्डलिनी साधना, ध्यान, धारणा इत्यादि बहुत से तरीके हैं।
जैसे कंप्यूटर में वायरस को रोकने के लिये अलग-अलग तरह के एंटी-वायरस होते हैं, और समय-समय लार उन्हें अपडेट भी किया जाता हैं, मित्रों वैसे ही मन में वायरस ना आ जाए इसके लिए भी अनेक एंटी-वायरस हैं। पर वो सब आज के जमाने में उपयोग में लाने कठिन है इसलिये मैंने समय के साथ उन्ही सिद्धांतो को आज की भाषा में अपडेट किया हैं।
मित्रों कंप्यूटर पर हम जैसे ही बाह्य जगत से जुड़ते हैं, यानी इंटरनेट का उपयोग करते ही वायरसों का हमला शुरू हो जाता हैं। और उनका सीधा हमला इन्टरनल मैमोरी की सिस्टम फाईलों पर होता है जिससे धीरे-धीरे कंप्यूटर की कार्यप्रणाली बाधित हो जाती हैं। वैसे ही जब हम बाह्य जगत के संपर्क में आते हैं तब हमारे जाग्रत मन पर ईच्छाओ, कामनाओं और विषय-वासनाओं रूपी वायरसों का हमला शुरू हो जाता हैं। यानी हमारा मन इन चीजों में भटकने लगता हैं। जिससे हमारा अवचेतन मन इन व्यर्थ के विषयों में अटक जाता हैं। फलस्वरूप हम हमारे लक्ष्य से भटक जाते हैं। एकाग्रता भंग हो जाती हैं।
अब कंप्यूटर में तो हम एंटी-वायरस लगाकर वायरस को रोक देते हैं। पर अब हम हमारे दैनिक जीवन में हम कैसे एंटी-वायरस को इंस्टोल करें, इसे समझते हैं।
मित्रों संसार में हर चीज का opposite हैं। बिना opposite के संसार की उत्पत्ति संभव नहीं। आगे-पीछे, ऊपर-निचे, सुख-दुःख, काला-सफ़ेद, वायरस-एंटी वायरस इत्यादि संसार में सभी चीजों के opposite हैं। और इनमे एक नियम है कि ये दोनों कभी एक दुसरे के साथ नही रह सकते, जहाँ एक होता है वहाँ दूसरा नही हो सकता। जब एक आता हैं तो दूसरा चला जाता हैं। जैसे सिक्के के दो पहलू दोनों आमने-सामने नही हो सकते जैसे एक स्कैल के दो हिस्से आगे और पीछे का ये दोनों एक साथ नही हो सकते जैसे सुख और दुःख दोनों एक साथ नहीं रह सकते वैसे हीं जब एंटी-वायरस कंप्यूटर में इंस्टाल हो तो वायरस नही आ सकता। यानी जब एक होता है तो दूसरा वहाँ आ नही सकता। इसलिये मित्रों अगर जीवन में दुःख आ जाए तो सुख को Download करो, दुःख भाग जाएगा।
बस मित्रों अब इसी नियम को ध्यान में रखकर हमें भी कामनाओं और वासनाओं रूपी वायरसों के लिए एंटी-वायरस हमारे मन रूपी कंप्यूटर ने फीड करना होगा।
मित्रों कंप्यूटर वायरस एक कमांड बेस प्रोग्राम होता हैं। जिसमे कंप्यूटर की सिस्टम फाईलों को नष्ट करने की कमांड दी होती हैं। वैसे ही एंटी-वायरस में वायरस के आते ही उनको नष्ट करने की कमांड दी होती हैं। बस अब हमें इन कामनाओं से होने वाली हानि को अवचेतन मन में फीड करना होगा। मित्रों अगर आपको आग्नि से जलने का ज्ञान होगा तो क्या आप आग्नि में हाथ डालेंगे ? वैसे ही मन के भटकने से क्या-क्या हानि होती है अगर इसका ज्ञान आपको हो जाय तो आप फिर इन कामनाओं और वासनाओं में नही भटकेंगे। ये वायरस सामने आते ही आप समझ जायेंगे और उन्हें अपने जीवन में आने नही देंगे।
मित्रों हालांकि मैंने पिछले भागों में उन सभी बातों को बताकर आपके विषय-वासनाओ के एंटी-वायरस को आपके अवचेतन-मन में फीड कर चुका हूँ। और यही कारण भी था इस रहस्योदघाटन में देरी का। क्योंकि में चाहता था की इस ज्ञान से पहले सारे एंटी-वायरस को आपके अवचेतन में फीड कर दूं। फिर भी मित्रों आपको समय-समय पर इसको अपडेट करते रहना होगा। और इसको अपडेट करने का एक ही जरिया हैं, और वो हैं
"सत्संग"।
मित्रों निरंतर सत्संग करने से हमारा विवेक जाग्रत रहता हैं और हमारा आत्मविश्वास मजबूत होता जाता हैं कि जीवन में हम जो यात्रा करेंगे वो कभी गलत नहीं होगी।
मित्रों आज का सफर बहुत कठिन था। पर जैसा की मैं हमेशा कहता हूँ कि ईश्वरीय रहस्यों को जानना हर किसी के बस की बात नहीं और यहाँ तक वे ही पहुँच पाये हैं, जिन्होंने अपने संयम को बनाए रखा। पर मित्रों सफ़र यही ख़त्म नही होता, मेरी नजर में तो यहाँ तक का सफर तो बहुत ही सामान्य था, पर आगे का सफर रहस्यों से भरा हुआ होगा। मित्रों मेरी खोज मात्र मानव तक खत्म नही होती हैं, मेरा लक्ष्य तो परमात्मा को पाना हैं।
मित्रों अतीत से भविष्य के सफर में आज आप कहाँ खड़े है अब इसका ज्ञान आपको हो गया होगा। पर आगे का सफ़र फिर भी जारी रहेगा।
राधे-राधे...
मित्रों पिछले कुछ पार्ट में हमें कर्म-फल के सिद्धांत के बारे में समझा की कैसे भावों को बदलकर कर्मों के फलों को बदला जा सकता हैं, और दूसरा ये भी समझा की भाव और कर्म दोनों अच्छे होते हुए भी पाप का फल भोगना पड़ता हैं। मित्रों आगे में आपको पाप और पुन्य के निर्धारण के बारे में बताऊंगा की कोन हैं वो, जो हमारे पाप और पुन्य को डिसाईड करता है। पर उससे पहले आज हम मन पर कैसे कन्ट्रोल रखें, इस पर चर्चा करेंगे।
मित्रों आगे का सफर थोड़ा कठिन हैं, पर मेरा निरंतर यही प्रयास है की में सरल शब्दों में इसे आप तक पहुँचा पाऊँ।
मित्रों मन को एकाग्र(काबू) करने की बहुत सी विधियाँ शास्त्रों में बताई गई हैं। व्रत, नियम, प्राणायाम, योग, कुण्डलिनी साधना, ध्यान, धारणा इत्यादि बहुत से तरीके हैं।
जैसे कंप्यूटर में वायरस को रोकने के लिये अलग-अलग तरह के एंटी-वायरस होते हैं, और समय-समय लार उन्हें अपडेट भी किया जाता हैं, मित्रों वैसे ही मन में वायरस ना आ जाए इसके लिए भी अनेक एंटी-वायरस हैं। पर वो सब आज के जमाने में उपयोग में लाने कठिन है इसलिये मैंने समय के साथ उन्ही सिद्धांतो को आज की भाषा में अपडेट किया हैं।
मित्रों कंप्यूटर पर हम जैसे ही बाह्य जगत से जुड़ते हैं, यानी इंटरनेट का उपयोग करते ही वायरसों का हमला शुरू हो जाता हैं। और उनका सीधा हमला इन्टरनल मैमोरी की सिस्टम फाईलों पर होता है जिससे धीरे-धीरे कंप्यूटर की कार्यप्रणाली बाधित हो जाती हैं। वैसे ही जब हम बाह्य जगत के संपर्क में आते हैं तब हमारे जाग्रत मन पर ईच्छाओ, कामनाओं और विषय-वासनाओं रूपी वायरसों का हमला शुरू हो जाता हैं। यानी हमारा मन इन चीजों में भटकने लगता हैं। जिससे हमारा अवचेतन मन इन व्यर्थ के विषयों में अटक जाता हैं। फलस्वरूप हम हमारे लक्ष्य से भटक जाते हैं। एकाग्रता भंग हो जाती हैं।
अब कंप्यूटर में तो हम एंटी-वायरस लगाकर वायरस को रोक देते हैं। पर अब हम हमारे दैनिक जीवन में हम कैसे एंटी-वायरस को इंस्टोल करें, इसे समझते हैं।
मित्रों संसार में हर चीज का opposite हैं। बिना opposite के संसार की उत्पत्ति संभव नहीं। आगे-पीछे, ऊपर-निचे, सुख-दुःख, काला-सफ़ेद, वायरस-एंटी वायरस इत्यादि संसार में सभी चीजों के opposite हैं। और इनमे एक नियम है कि ये दोनों कभी एक दुसरे के साथ नही रह सकते, जहाँ एक होता है वहाँ दूसरा नही हो सकता। जब एक आता हैं तो दूसरा चला जाता हैं। जैसे सिक्के के दो पहलू दोनों आमने-सामने नही हो सकते जैसे एक स्कैल के दो हिस्से आगे और पीछे का ये दोनों एक साथ नही हो सकते जैसे सुख और दुःख दोनों एक साथ नहीं रह सकते वैसे हीं जब एंटी-वायरस कंप्यूटर में इंस्टाल हो तो वायरस नही आ सकता। यानी जब एक होता है तो दूसरा वहाँ आ नही सकता। इसलिये मित्रों अगर जीवन में दुःख आ जाए तो सुख को Download करो, दुःख भाग जाएगा।
बस मित्रों अब इसी नियम को ध्यान में रखकर हमें भी कामनाओं और वासनाओं रूपी वायरसों के लिए एंटी-वायरस हमारे मन रूपी कंप्यूटर ने फीड करना होगा।
मित्रों कंप्यूटर वायरस एक कमांड बेस प्रोग्राम होता हैं। जिसमे कंप्यूटर की सिस्टम फाईलों को नष्ट करने की कमांड दी होती हैं। वैसे ही एंटी-वायरस में वायरस के आते ही उनको नष्ट करने की कमांड दी होती हैं। बस अब हमें इन कामनाओं से होने वाली हानि को अवचेतन मन में फीड करना होगा। मित्रों अगर आपको आग्नि से जलने का ज्ञान होगा तो क्या आप आग्नि में हाथ डालेंगे ? वैसे ही मन के भटकने से क्या-क्या हानि होती है अगर इसका ज्ञान आपको हो जाय तो आप फिर इन कामनाओं और वासनाओं में नही भटकेंगे। ये वायरस सामने आते ही आप समझ जायेंगे और उन्हें अपने जीवन में आने नही देंगे।
मित्रों हालांकि मैंने पिछले भागों में उन सभी बातों को बताकर आपके विषय-वासनाओ के एंटी-वायरस को आपके अवचेतन-मन में फीड कर चुका हूँ। और यही कारण भी था इस रहस्योदघाटन में देरी का। क्योंकि में चाहता था की इस ज्ञान से पहले सारे एंटी-वायरस को आपके अवचेतन में फीड कर दूं। फिर भी मित्रों आपको समय-समय पर इसको अपडेट करते रहना होगा। और इसको अपडेट करने का एक ही जरिया हैं, और वो हैं
"सत्संग"।
मित्रों निरंतर सत्संग करने से हमारा विवेक जाग्रत रहता हैं और हमारा आत्मविश्वास मजबूत होता जाता हैं कि जीवन में हम जो यात्रा करेंगे वो कभी गलत नहीं होगी।
मित्रों आज का सफर बहुत कठिन था। पर जैसा की मैं हमेशा कहता हूँ कि ईश्वरीय रहस्यों को जानना हर किसी के बस की बात नहीं और यहाँ तक वे ही पहुँच पाये हैं, जिन्होंने अपने संयम को बनाए रखा। पर मित्रों सफ़र यही ख़त्म नही होता, मेरी नजर में तो यहाँ तक का सफर तो बहुत ही सामान्य था, पर आगे का सफर रहस्यों से भरा हुआ होगा। मित्रों मेरी खोज मात्र मानव तक खत्म नही होती हैं, मेरा लक्ष्य तो परमात्मा को पाना हैं।
मित्रों अतीत से भविष्य के सफर में आज आप कहाँ खड़े है अब इसका ज्ञान आपको हो गया होगा। पर आगे का सफ़र फिर भी जारी रहेगा।
राधे-राधे...