ज्योतिषीय उपायों के पीछे छुपा विज्ञान...8
दोस्तों पिछले पार्ट में हमनें लाफिंग बुद्धा और मूर्तियों से सम्बंधित कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। मैं आभारी हूँ व्हाट्स एप्प और फेस बुक का जिनके द्वारा मुझे यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने का अवसर मिला। और आभारी हूँ आप सभी मित्रों का जिनके अभिवादन और प्रोत्साहन ने मुझे ध्यान के सागर में गोता लगाने का अवसर दिया।
दोस्तों मूर्ती पूजा को लेकर इतिहास में बहुत विरोध हुए थे। आज भी हिन्दू समाज में बहुत से ऐसे पंथ हैं जो ज्ञान के अभाव में मूर्ती पूजा को नही मानते। जबकि हजारों वर्ष पूर्व सत-युग, त्रेता-युग और द्वापर युग, इन सभी युगों में मूर्ती पूजा के प्रमाण मिले थे। दोस्तों हिन्दू धर्म विश्व का एक मात्र पौराणिक धर्म हैं जिसमे सदियों पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने ब्रम्हांड के नियमों को समझकर विज्ञान को समझकर इन परम्पराओं का निर्माण मात्र मनुष्य जाती के कल्याण लिये किया था। पर ज्ञान-विज्ञान के अभाव में कुछ लोगों ने इसका विरोध कर इस परंपरा को मिटाने का प्रयास किया। मित्रों आज हिन्दू धर्म के पुनर्जागरण की अति आवश्यकता हैं। हमे सिर्फ कथा-कहानिये ही नही पढ़नी हैं, और न ही सिर्फ ज्योतिष ईत्यादि पर चर्चा करनी हैं, बल्कि हमारे धर्म की हर परम्परा के पीछे छुपे विज्ञान और उनसे मिलने वाले लाभ का ज्ञान प्रदान कर समाज को पुनः संगठित करना हैं।
अरे हमसे जल्दी तो मूर्ती के पीछे छुपे रहस्य को तो अंग्रजों ने समझ लिया था। वे करोड़ों रूपये देकर हमारी उन पुरानी मूर्तियों को ले जाकर सम्रद्ध हो गये जो हजारों वर्षो से हमारे मंदिरों में ऊर्जान्वित हो रही थी। हजारों वर्षों से हमारे कितने ही पूर्वजों ने जिन मूर्तियों को पूज कर अपनी ऊर्जा से सींचा उन उच्च ऊर्जावान अनमोल मूर्तियों को हमने करोड़ों रूपये के लालच में बेच दिया। इससे अधिक शर्म की बात हमारे लिये और क्या होगी।
अब जो हुआ सो हुआ, पर अब जब आपको ऊर्जा-विज्ञान का ज्ञान हो गया हैं तो आज ही संकल्प लो की आज के बाद रोज दिन में एक बार मंदिर जरूर जायेंगे। और उस मूर्ती की सकारात्मक ऊर्जा पाकर सुखी जीवन जियेंगे। जब अंग्रेज हमारी मूर्तियों से सुखी और सम्पन्न हो सकते हैं तो हमे भी हमारी इस सम्पदा का लाभ उठाने से नही चूकना चाहिये।
अब पुनः विषय पर आते हैं....
दोस्तों भगवान की मूर्ती या लाफिंग बुद्धा इत्यादि के पीछे छुपे हुए ऊर्जा विज्ञान को अब आप पूर्ण रूप से समझ चुके हैं, कि इसमें एक मूर्ति या स्टेच्यू के द्वारा मन की फिलिंग को जेनरेट कर चुम्बकीय तरंगों के रूप में श्रेष्ठ परिणामों को पाने की प्रोग्रामिंग की जाती हैं।
मित्रों पिछले पार्ट में मैं आपको यह बात बता चुका हूँ कि लाफिंग बुद्धा "धातु" का ही होना चाहिये। क्योंकि काफी समय और काफी लोगों के देखने के बाद, जब यह स्टेच्यू एनर्जेटिक होता हैं तब ऐसे में अगर ये टूट जाये, तो सारी मेहनत बेकार चली जाती हैं। और टूटने के बाद इसकी ऊर्जा भी नकारात्मक होकर बिखरती हैं। आपने सुना होगा की हमारे शास्त्रों में भी किसी मूर्ती का खंडित होना अपशगुन बताया जाता हैं। जैसे एक आग का गोला जब तक पूर्ण होता हैं तब तक रौशनी देता हैं, पर जब वह बिखर जाता है तब जसकी ऊर्जा बिखर कर नकारात्मक हो जाती हैं। इसलिये हमारे धर्म-शास्त्रों ठोस पत्थर की मूर्ती या धातु की मूर्ती के प्रयोग का ही बोला जाता हैं। और घरों में तो छः अंगुल से ज्यादा की मूर्ती का प्रयोग तो वर्जित ही बताया गया हैं। क्योंकि मूर्ती जितनी बड़ी होती हैं उसे उतनी ही अधिक ऊर्जा की जरूरत होती हैं, जो घर परिवारों में सम्भव नही।
अब यह भी जान लें कि लाफिंग बुद्धा को घर में कहाँ लगाना चाहिये।
दोस्तों लाफिंग बुद्धा को भी हमे उतना ही सम्मान देना चाहिये जितना हम भगवान की मूर्ती को देते हैं, पर इसकी पूजा नही करनी हैं। दोस्तों किसी भी चीज को सम्मान देने से हमारे प्रति उसकी कृतज्ञता और भी बढ़ जाती हैं, ये नेचर का वो नेचर हैं जो सजीव या निर्जीव सभी पर लागू होता हैं।
लाफिंग बुद्धा को घर के प्रवेश द्वार पर ऐसा रखें की घर में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की दृष्टि उस पर पड़े। इस स्टेच्यू को ढाई-तीन फुट की स्टूल ईत्यादि पर ऐसा रखे की हर किसी की नजर इस पर आसानी से पड़े। क्योंकि जितने ज्यादा लोगों की जितनी अधिक बार इस पर दृष्टि पड़ेगी, उतना ही यह अधिक एनर्जेटिक होगा।
स्टेच्यू के किसी भी टक्कर न लगे इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिये। इस पर धूल-मिट्टी इत्यादि बिल्कुल नही होनी चाहिये। समय-समय पर इसकी सफाई के साथ इसकी सुंदरता बनी रहनी चाहिये। इसके आस-पास और कोई अन्य चित्र, मूर्ती इत्यादि भी नही होने चाहिये।
लाफिंग बुद्धा को पूजा घर, बैडरूम, रसोई, डाइनिंग टेबल, बाथरूम, इत्यादि जगह पर कभी नही रखना चाहिये। लाफिंग बुद्धा को ऑफिस या दुकान में भी ऐसी जगह रखना चाहिये जहाँ पर हर आने वाली व्यक्ति की नजर उस पर पड़े।
दोस्तों लाफिंग बुद्धा का उपाय कहने में तो बहुत छोटा और साधारण लगता हैं, पर इस उपाय के पीछे विज्ञान बहुत गहरा हैं। और इसके पीछे छुपे विज्ञान का पूर्ण ज्ञान हो जाये तो पूर्ण आत्मविश्वास के साथ इस उपाय का लाभ उठाया जा सकता हैं। अगले पार्ट में हम निश्चित ही अलग-अलग आकृति वाले लाफिंग बुद्धा के प्रयोग पर महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। तब तक के लिये...
राधे-राधे...
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दोस्तों पिछले पार्ट में हमनें लाफिंग बुद्धा और मूर्तियों से सम्बंधित कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। मैं आभारी हूँ व्हाट्स एप्प और फेस बुक का जिनके द्वारा मुझे यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने का अवसर मिला। और आभारी हूँ आप सभी मित्रों का जिनके अभिवादन और प्रोत्साहन ने मुझे ध्यान के सागर में गोता लगाने का अवसर दिया।
दोस्तों मूर्ती पूजा को लेकर इतिहास में बहुत विरोध हुए थे। आज भी हिन्दू समाज में बहुत से ऐसे पंथ हैं जो ज्ञान के अभाव में मूर्ती पूजा को नही मानते। जबकि हजारों वर्ष पूर्व सत-युग, त्रेता-युग और द्वापर युग, इन सभी युगों में मूर्ती पूजा के प्रमाण मिले थे। दोस्तों हिन्दू धर्म विश्व का एक मात्र पौराणिक धर्म हैं जिसमे सदियों पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने ब्रम्हांड के नियमों को समझकर विज्ञान को समझकर इन परम्पराओं का निर्माण मात्र मनुष्य जाती के कल्याण लिये किया था। पर ज्ञान-विज्ञान के अभाव में कुछ लोगों ने इसका विरोध कर इस परंपरा को मिटाने का प्रयास किया। मित्रों आज हिन्दू धर्म के पुनर्जागरण की अति आवश्यकता हैं। हमे सिर्फ कथा-कहानिये ही नही पढ़नी हैं, और न ही सिर्फ ज्योतिष ईत्यादि पर चर्चा करनी हैं, बल्कि हमारे धर्म की हर परम्परा के पीछे छुपे विज्ञान और उनसे मिलने वाले लाभ का ज्ञान प्रदान कर समाज को पुनः संगठित करना हैं।
अरे हमसे जल्दी तो मूर्ती के पीछे छुपे रहस्य को तो अंग्रजों ने समझ लिया था। वे करोड़ों रूपये देकर हमारी उन पुरानी मूर्तियों को ले जाकर सम्रद्ध हो गये जो हजारों वर्षो से हमारे मंदिरों में ऊर्जान्वित हो रही थी। हजारों वर्षों से हमारे कितने ही पूर्वजों ने जिन मूर्तियों को पूज कर अपनी ऊर्जा से सींचा उन उच्च ऊर्जावान अनमोल मूर्तियों को हमने करोड़ों रूपये के लालच में बेच दिया। इससे अधिक शर्म की बात हमारे लिये और क्या होगी।
अब जो हुआ सो हुआ, पर अब जब आपको ऊर्जा-विज्ञान का ज्ञान हो गया हैं तो आज ही संकल्प लो की आज के बाद रोज दिन में एक बार मंदिर जरूर जायेंगे। और उस मूर्ती की सकारात्मक ऊर्जा पाकर सुखी जीवन जियेंगे। जब अंग्रेज हमारी मूर्तियों से सुखी और सम्पन्न हो सकते हैं तो हमे भी हमारी इस सम्पदा का लाभ उठाने से नही चूकना चाहिये।
अब पुनः विषय पर आते हैं....
दोस्तों भगवान की मूर्ती या लाफिंग बुद्धा इत्यादि के पीछे छुपे हुए ऊर्जा विज्ञान को अब आप पूर्ण रूप से समझ चुके हैं, कि इसमें एक मूर्ति या स्टेच्यू के द्वारा मन की फिलिंग को जेनरेट कर चुम्बकीय तरंगों के रूप में श्रेष्ठ परिणामों को पाने की प्रोग्रामिंग की जाती हैं।
मित्रों पिछले पार्ट में मैं आपको यह बात बता चुका हूँ कि लाफिंग बुद्धा "धातु" का ही होना चाहिये। क्योंकि काफी समय और काफी लोगों के देखने के बाद, जब यह स्टेच्यू एनर्जेटिक होता हैं तब ऐसे में अगर ये टूट जाये, तो सारी मेहनत बेकार चली जाती हैं। और टूटने के बाद इसकी ऊर्जा भी नकारात्मक होकर बिखरती हैं। आपने सुना होगा की हमारे शास्त्रों में भी किसी मूर्ती का खंडित होना अपशगुन बताया जाता हैं। जैसे एक आग का गोला जब तक पूर्ण होता हैं तब तक रौशनी देता हैं, पर जब वह बिखर जाता है तब जसकी ऊर्जा बिखर कर नकारात्मक हो जाती हैं। इसलिये हमारे धर्म-शास्त्रों ठोस पत्थर की मूर्ती या धातु की मूर्ती के प्रयोग का ही बोला जाता हैं। और घरों में तो छः अंगुल से ज्यादा की मूर्ती का प्रयोग तो वर्जित ही बताया गया हैं। क्योंकि मूर्ती जितनी बड़ी होती हैं उसे उतनी ही अधिक ऊर्जा की जरूरत होती हैं, जो घर परिवारों में सम्भव नही।
अब यह भी जान लें कि लाफिंग बुद्धा को घर में कहाँ लगाना चाहिये।
दोस्तों लाफिंग बुद्धा को भी हमे उतना ही सम्मान देना चाहिये जितना हम भगवान की मूर्ती को देते हैं, पर इसकी पूजा नही करनी हैं। दोस्तों किसी भी चीज को सम्मान देने से हमारे प्रति उसकी कृतज्ञता और भी बढ़ जाती हैं, ये नेचर का वो नेचर हैं जो सजीव या निर्जीव सभी पर लागू होता हैं।
लाफिंग बुद्धा को घर के प्रवेश द्वार पर ऐसा रखें की घर में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की दृष्टि उस पर पड़े। इस स्टेच्यू को ढाई-तीन फुट की स्टूल ईत्यादि पर ऐसा रखे की हर किसी की नजर इस पर आसानी से पड़े। क्योंकि जितने ज्यादा लोगों की जितनी अधिक बार इस पर दृष्टि पड़ेगी, उतना ही यह अधिक एनर्जेटिक होगा।
स्टेच्यू के किसी भी टक्कर न लगे इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिये। इस पर धूल-मिट्टी इत्यादि बिल्कुल नही होनी चाहिये। समय-समय पर इसकी सफाई के साथ इसकी सुंदरता बनी रहनी चाहिये। इसके आस-पास और कोई अन्य चित्र, मूर्ती इत्यादि भी नही होने चाहिये।
लाफिंग बुद्धा को पूजा घर, बैडरूम, रसोई, डाइनिंग टेबल, बाथरूम, इत्यादि जगह पर कभी नही रखना चाहिये। लाफिंग बुद्धा को ऑफिस या दुकान में भी ऐसी जगह रखना चाहिये जहाँ पर हर आने वाली व्यक्ति की नजर उस पर पड़े।
दोस्तों लाफिंग बुद्धा का उपाय कहने में तो बहुत छोटा और साधारण लगता हैं, पर इस उपाय के पीछे विज्ञान बहुत गहरा हैं। और इसके पीछे छुपे विज्ञान का पूर्ण ज्ञान हो जाये तो पूर्ण आत्मविश्वास के साथ इस उपाय का लाभ उठाया जा सकता हैं। अगले पार्ट में हम निश्चित ही अलग-अलग आकृति वाले लाफिंग बुद्धा के प्रयोग पर महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। तब तक के लिये...
राधे-राधे...
ज्योतिषीय उपायों के पीछे छुपा विज्ञान...9