ज्योतिषीय उपायों के पीछे छुपा विज्ञान...5
दोस्तों पिछले भागों में मैंने आपको बताया कि कैसे उपायों के द्वारा चुम्बकीय-तरंगों के सहारे व्यक्ति के स्वभाव को परिवर्तित कर समस्याओं का निदान किया जाता हैं।
पिछले पार्ट में मैंने आपको यह भी समझाने का प्रयास किया कि संसार की किसी भी घटना, वस्तु ईत्यादि को देखने से जो फिलिंग बनती हैं वह फिलिंग ही "चुम्बकीय-तरंगे" (मानसिक तरंगे) होती हैं। दोस्तों सभी चौरासी लाख योनियों में सभी जीवों में फिलिंग वाला सिस्टम एक जैसा ही काम करता हैं। अमूमन एक ही घटना को देखने से भले ही उस घटना को अलग-अलग भाषाओं में परिभाषित किया जाता हो, पर फिलिंग सभी की एक ही होगी। जैसे आप अल्लाह कहो, ईश्वर कहो, गॉड कहो या किसी भी नाम के सहारे अपने परमात्मा को पुकारो, पर सभी की फिलिंग एक ही होगी कि हम उस ऊपर वाले को याद कर रहे हैं।
दोस्तों चौरासी लाख योनियों में फिलिंग ही एक मात्र वो भाषा या जरिया है जिसे वो परमात्मा समझता है। मेरी भाषा में कहूँ तो फिलिंग ही इस ब्रम्हांड की सिस्टम लेंग्वेज हैं जिससे सम्पूर्ण ब्रम्हांड संचालित हो रहा हैं। सभी जीवों में पल-पल बन रही उनकी फिलिंग ही उनके भविष्य को प्रोग्राम कर रही होती हैं।
हमारी फिलिंग ही चुम्बकीय-तरंगों के रूप में हमारी आत्मा में निरन्तर रिकॉर्ड होती रहती हैं। आत्मा में जन्म-जन्मान्तरों के डेटा "चुम्बकीय-तरंगों" के रूप में ही Save होते हैं, जिनका निर्माण मन-बुद्धि के तालमेल से शरीर द्वारा ही होता हैं। जन्म से लेकर मत्यु तक लगातार हम जैसा-जैसा फील करते हैं वो फिलिंग आत्मा में "चुम्बकीय-तरंगों" के रूप में Save होती रहती हैं। और यही फिलिंग हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग में अपनी अहम भूमिका निभाती हैं।
उपायों इत्यादि में इसी सिद्धांत का लाभ उठाते हुए आवश्यकतानुसार अलग-अलग कर्मों के द्वारा फिलिंग (मानसिक तरंगे / चुम्बकीय तरंगे) जेनरेट कर परिणामों की प्रोग्रामिंग की जाती हैं।
अगर आज आप इस "फिलिंग" वाले सिद्धांत को समझ जाते हैं तो निश्चित ही आज के बाद आपका भविष्य आपके हाथ में होगा।
मैं आपको कुछ उदाहरण बताता हूँ कि हमारे द्वारा किये गए कर्मों से बनी फिलिंग के द्वारा कैसे हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग होती हैं।
दोस्तों जैसे आपने सामान बेच कर या मेहनत-मजदूरी करके 100 रुपये कमाए, तो इस 100 रूपये को आपका मन, आपकी मेहनत की कमाई से प्राप्त धन के रूप में फील करेगा। मन की फिलिंग इस धन को अपना होने की स्वीकृति देगी, और ऐसा धन भविष्य में आपके सुख पर खर्च होने के लिये ही प्रोग्राम होगा।
पर अगर आपने 100 रूपये कहीं से चुराए हैं, छिने हैं, कामचौरी की हैं, या किसी को धोखा देकर लिये हैं तो ऐसे तरीकों से आये धन को आपका मन चौरी या हराम के धन के रूप में ही फील करेगा। आपका मन इस धन को किसी भी हालत में अपने धन के रूप में स्वीकार नही करेगा। और मन की इसी फिलिंग या ऐसी स्वीकृति के चलते वह धन आपके पास किसी भी हालत में नही टिकेगा। ऐसे धन को मन की स्वीकृति नही होने के कारण इस धन से आपका शारीरिक या मानसिक सुख नही आयेगा, बल्कि ऐसा धन रोग इत्यादि के द्वारा आपकी तिजोरी से बाहर निकल जायेगा।
इन दोनों उदाहरणों में 100 रूपये आपकी जेब में आये, पर अलग-अलग फिलिंग बनने के कारण अलग-अलग परिणामों की प्रोग्रामिंग हुई। अब आप समझ गए होंगे कि मन की फिलिंग ही हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग करती हैं। आपके द्वारा किये गये कर्मो के फल का निर्धारण करने में भगवान का कोई हाथ नही होता। परमात्मा में ने तो सारा का सारा सिस्टम हमारे अंदर ही सेट कर दिया हैं। हमारे द्वारा किये गये कर्मो से बनी फिलिंग ही हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग करती हैं। यह प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वचलित होती हैं।
ये एक छोटा सा उदाहरण था, पर अगर आप इस फिलिंग वाले सिद्धांत को समझ गये हैं तो आपको अपने हर कर्म के साथ बनने वाली फिलिंग से अपने भविष्य की प्रोग्रामिंग यानि भविष्य में मिलने वाले परिणामों का ज्ञान हो जायेगा।
अमूमन हर व्यक्ति की फिलिंग उसके प्रारब्ध के अनुसार ही बनती हैं। जैसे कोई व्यक्ति किसी वस्तु को दुगुनी कीमत में बेचता हैं, पर अपने इस कर्म को वो गलत फील करता हैं तो उसके मन के उपरान्त आई रकम उसकी तिजोरी से रोग, शोक या दुःख का रूप लेकर निकल जाएगी। पर इसके बावजूत कोई दूसरा व्यक्ति दुगुनी कीमत में बेचे गये माल की कमाई को अपनी मानसिक बुद्धिबल की कमाई समझ कर फील करता हैं और उस रकम को अपनी पूर्ण स्वीकृति प्रदान करता हैं तो यह धन उसके सुख और ऐश्वर्य में खर्च होता हैं।
दोस्तों एक जैसे कर्म पर दो व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न फिलिंग उनके प्रारब्ध के कारण बनती हैं। और मन द्वारा बनी यही अलग-अलग फिलिंग ही एक ही कर्म होने के बावजूत भी भविष्य के अलग-अलग परिणामों को निर्धारित करती हैं।
हैं ना हैरानी की बात...
सीता हरण और रुक्मणी हरण, दोनों कर्म एक से थे, पर दोनों कर्मो के कर्ताओं के भाव अलग-अलग होने से परिणाम भिन्न-भिन्न मिले। रावण ने बुरी फिलिंग के साथ सीता का हरण किया, और श्री कृष्ण ने अच्छी फिलिंग के साथ रुक्मणी का हरण किया। कर्म एक ही था पर दोनों कर्मो में कर्ताओं की फिलिंग अलग-अलग होने से परिणाम भिन्न-भिन्न मिले।
अब आप समझ गये होंगे की हमारी फिलिंग ही हमारे भविष्य को प्रोग्राम करती हैं। और अगर समझ गये हैं तो अभी से अपने सभी कर्मों को अच्छी फिलिंग के साथ सम्पन्न करना प्रारम्भ कर दीजिये। यहीं से ही अच्छे परिणामों की शुरुआत हो जायेगी।
अगले पार्ट में हम ये समझेंगे की फेंगशुई में अलग-अलग आकृति वाले लॉफिंग-बुद्धा का प्रयोग कर कैसी-कैसी फिलिंग जेनरेट कराई जाती हैं, और यह फिलिंग हमे किन-किन परिणामों तक ले जाती हैं।
राधे-राधे...
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दोस्तों पिछले भागों में मैंने आपको बताया कि कैसे उपायों के द्वारा चुम्बकीय-तरंगों के सहारे व्यक्ति के स्वभाव को परिवर्तित कर समस्याओं का निदान किया जाता हैं।
पिछले पार्ट में मैंने आपको यह भी समझाने का प्रयास किया कि संसार की किसी भी घटना, वस्तु ईत्यादि को देखने से जो फिलिंग बनती हैं वह फिलिंग ही "चुम्बकीय-तरंगे" (मानसिक तरंगे) होती हैं। दोस्तों सभी चौरासी लाख योनियों में सभी जीवों में फिलिंग वाला सिस्टम एक जैसा ही काम करता हैं। अमूमन एक ही घटना को देखने से भले ही उस घटना को अलग-अलग भाषाओं में परिभाषित किया जाता हो, पर फिलिंग सभी की एक ही होगी। जैसे आप अल्लाह कहो, ईश्वर कहो, गॉड कहो या किसी भी नाम के सहारे अपने परमात्मा को पुकारो, पर सभी की फिलिंग एक ही होगी कि हम उस ऊपर वाले को याद कर रहे हैं।
दोस्तों चौरासी लाख योनियों में फिलिंग ही एक मात्र वो भाषा या जरिया है जिसे वो परमात्मा समझता है। मेरी भाषा में कहूँ तो फिलिंग ही इस ब्रम्हांड की सिस्टम लेंग्वेज हैं जिससे सम्पूर्ण ब्रम्हांड संचालित हो रहा हैं। सभी जीवों में पल-पल बन रही उनकी फिलिंग ही उनके भविष्य को प्रोग्राम कर रही होती हैं।
हमारी फिलिंग ही चुम्बकीय-तरंगों के रूप में हमारी आत्मा में निरन्तर रिकॉर्ड होती रहती हैं। आत्मा में जन्म-जन्मान्तरों के डेटा "चुम्बकीय-तरंगों" के रूप में ही Save होते हैं, जिनका निर्माण मन-बुद्धि के तालमेल से शरीर द्वारा ही होता हैं। जन्म से लेकर मत्यु तक लगातार हम जैसा-जैसा फील करते हैं वो फिलिंग आत्मा में "चुम्बकीय-तरंगों" के रूप में Save होती रहती हैं। और यही फिलिंग हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग में अपनी अहम भूमिका निभाती हैं।
उपायों इत्यादि में इसी सिद्धांत का लाभ उठाते हुए आवश्यकतानुसार अलग-अलग कर्मों के द्वारा फिलिंग (मानसिक तरंगे / चुम्बकीय तरंगे) जेनरेट कर परिणामों की प्रोग्रामिंग की जाती हैं।
अगर आज आप इस "फिलिंग" वाले सिद्धांत को समझ जाते हैं तो निश्चित ही आज के बाद आपका भविष्य आपके हाथ में होगा।
मैं आपको कुछ उदाहरण बताता हूँ कि हमारे द्वारा किये गए कर्मों से बनी फिलिंग के द्वारा कैसे हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग होती हैं।
दोस्तों जैसे आपने सामान बेच कर या मेहनत-मजदूरी करके 100 रुपये कमाए, तो इस 100 रूपये को आपका मन, आपकी मेहनत की कमाई से प्राप्त धन के रूप में फील करेगा। मन की फिलिंग इस धन को अपना होने की स्वीकृति देगी, और ऐसा धन भविष्य में आपके सुख पर खर्च होने के लिये ही प्रोग्राम होगा।
पर अगर आपने 100 रूपये कहीं से चुराए हैं, छिने हैं, कामचौरी की हैं, या किसी को धोखा देकर लिये हैं तो ऐसे तरीकों से आये धन को आपका मन चौरी या हराम के धन के रूप में ही फील करेगा। आपका मन इस धन को किसी भी हालत में अपने धन के रूप में स्वीकार नही करेगा। और मन की इसी फिलिंग या ऐसी स्वीकृति के चलते वह धन आपके पास किसी भी हालत में नही टिकेगा। ऐसे धन को मन की स्वीकृति नही होने के कारण इस धन से आपका शारीरिक या मानसिक सुख नही आयेगा, बल्कि ऐसा धन रोग इत्यादि के द्वारा आपकी तिजोरी से बाहर निकल जायेगा।
इन दोनों उदाहरणों में 100 रूपये आपकी जेब में आये, पर अलग-अलग फिलिंग बनने के कारण अलग-अलग परिणामों की प्रोग्रामिंग हुई। अब आप समझ गए होंगे कि मन की फिलिंग ही हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग करती हैं। आपके द्वारा किये गये कर्मो के फल का निर्धारण करने में भगवान का कोई हाथ नही होता। परमात्मा में ने तो सारा का सारा सिस्टम हमारे अंदर ही सेट कर दिया हैं। हमारे द्वारा किये गये कर्मो से बनी फिलिंग ही हमारे भविष्य की प्रोग्रामिंग करती हैं। यह प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वचलित होती हैं।
ये एक छोटा सा उदाहरण था, पर अगर आप इस फिलिंग वाले सिद्धांत को समझ गये हैं तो आपको अपने हर कर्म के साथ बनने वाली फिलिंग से अपने भविष्य की प्रोग्रामिंग यानि भविष्य में मिलने वाले परिणामों का ज्ञान हो जायेगा।
अमूमन हर व्यक्ति की फिलिंग उसके प्रारब्ध के अनुसार ही बनती हैं। जैसे कोई व्यक्ति किसी वस्तु को दुगुनी कीमत में बेचता हैं, पर अपने इस कर्म को वो गलत फील करता हैं तो उसके मन के उपरान्त आई रकम उसकी तिजोरी से रोग, शोक या दुःख का रूप लेकर निकल जाएगी। पर इसके बावजूत कोई दूसरा व्यक्ति दुगुनी कीमत में बेचे गये माल की कमाई को अपनी मानसिक बुद्धिबल की कमाई समझ कर फील करता हैं और उस रकम को अपनी पूर्ण स्वीकृति प्रदान करता हैं तो यह धन उसके सुख और ऐश्वर्य में खर्च होता हैं।
दोस्तों एक जैसे कर्म पर दो व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न फिलिंग उनके प्रारब्ध के कारण बनती हैं। और मन द्वारा बनी यही अलग-अलग फिलिंग ही एक ही कर्म होने के बावजूत भी भविष्य के अलग-अलग परिणामों को निर्धारित करती हैं।
हैं ना हैरानी की बात...
सीता हरण और रुक्मणी हरण, दोनों कर्म एक से थे, पर दोनों कर्मो के कर्ताओं के भाव अलग-अलग होने से परिणाम भिन्न-भिन्न मिले। रावण ने बुरी फिलिंग के साथ सीता का हरण किया, और श्री कृष्ण ने अच्छी फिलिंग के साथ रुक्मणी का हरण किया। कर्म एक ही था पर दोनों कर्मो में कर्ताओं की फिलिंग अलग-अलग होने से परिणाम भिन्न-भिन्न मिले।
अब आप समझ गये होंगे की हमारी फिलिंग ही हमारे भविष्य को प्रोग्राम करती हैं। और अगर समझ गये हैं तो अभी से अपने सभी कर्मों को अच्छी फिलिंग के साथ सम्पन्न करना प्रारम्भ कर दीजिये। यहीं से ही अच्छे परिणामों की शुरुआत हो जायेगी।
अगले पार्ट में हम ये समझेंगे की फेंगशुई में अलग-अलग आकृति वाले लॉफिंग-बुद्धा का प्रयोग कर कैसी-कैसी फिलिंग जेनरेट कराई जाती हैं, और यह फिलिंग हमे किन-किन परिणामों तक ले जाती हैं।
राधे-राधे...
ज्योतिषीय उपायों के पीछे छुपा विज्ञान...6